आलोक रंजन / चंडीगढ़। पंजाब में विधानसभा चुनाव के लिए मतदान ख़त्म होते ही संभावनाओं की सियासत शुरू हो चुकी है। चुनाव के नतीजे 10 मार्च को आएंगे, लेकिन उससे पहले ही सियासी पार्टियों ने सत्ता पर क़ाबिज होने की रणनीति तैयार करनी शुरू कर दी है। सियासी जानकारों की मानें तो इस बार पंजाब में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिलने वाला है। चुनाव के नतीजे घोषित होने से पहले ही शिअद-भाजपा के गठबंधन की चर्चा तेज़ हो चुकी है। शिरोमणि अकाली दल और भारतीय जनता पार्टी फिर से एक साथ किस तर्ज़ पर आ सकते हैं और कहां पेंच फंस सकता है। सियासी गलियारों में यह चर्चा का विषय बना हुआ है।
सियासी जानकारों के मुताबिक ग्रामीण इलाके में शिरोमणि अकाली दल के समर्थक ज़्यादा हैं। इस वजह से शिअद को ज्यादा सीटें मिलने कू उम्मीद जताई जा रही है। इसके अलावा शहरी क्षेत्रों में जहां मतदान कम हुए वह आम आदमी पार्टी के प्रभाव वाला क्षेत्र है। वहां मतदान कम होने की वजह से आम आदमी पार्टी की सीटें घट सकती हैं। इन्हीं समीकरणों को देखते हुए शिअद के वरिष्ठ नेता बिक्रम सिंह मजीठिया के बयानों से सियासी पारा चढ़ गया है। शिअद-भाजपा के गठबंधन पर तरह-तरह की चर्चाएं हो रही हैं। सूत्रों की मानें तो भाजपा गठबंधन के साथी ( कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाली पंजाब लोक कांग्रेस और शिअद संयुक्त) और शिअद, बसपा के बीच गठबंधन सरकार बनने की प्रबल संभावना है। लेकिन गठबंधन होने की सबसे बड़ी शर्त शिरोमणि अकाली दल को 40 सीटें लानी होंगी। इसी के आधार पर शिअद और भाजपा के महा गठबंधन का रास्ता खुलेगा।