जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली । चर्म रोग को लेकर समाज में गलत धारणा बनी हुई है। कोई इसे पुस्तैनी रोग मानता है तो कोई दैविक अभिशाप। जबकि चर्म रोग शरीर के अंदर गडबडी होने से यह रोग होता है। लोग तो इसे लाइलाज बीमारी तक मानते है। होमियोपैथिक चिकित्सक डॉ. ममता काबरा व डॉ. महेंद्र काबरा का कहना है कि ऐलोपैथिक डॉक्टरों ने चर्म रोग को लेकर गलत संदेश समाज को दिया है। डॉ. काबरा दंपत्ति का कहना है कि वो अभीतक 80000 से ज्यादा चर्म रोगियों को इस रोग से मुक्ति दिला चुके हैं।
जलगांव महाराष्ट्रा के रहने वाले डॉ.काबरा दंपति का कहना है कि उन्होंने अनुसंधान कर एक प्रभावी उपचार पद्धति विकसित किया है। जिसके लिए उन्हें न सिर्फ देश में बल्कि विदेशों में सम्मानित किया गया है। डॉ. महेंद्र कालरा का कहना है कि विश्व होमियोपैथी परिषद, इटली ने 1996 में उन्हें विशेष अनुसंधान चिकित्सक सम्मान देकर नवाजा है। ऐसा सम्मान पाने वाले वह पहले भारतीय हैं जिससे देश का नाम भी ऊंचा हुआ है। डॉ.काबरा के इस सफलता में उनकी पत्नी ममता कालरा का विशेष योगदान है।
डॉ. काबरा कहते हैं कि चर्मरोग कायादोष होता है जो त्वचा पर उभरी लक्षण मात्र है। जीवन सुरक्षित रहे इसलिए हमारी प्रतिरोध शक्ति विष को त्वचा के माध्यम से बाहर निकलता है। विष निर्गमित होने के जो लक्षण त्वचा पर निर्माण होते हं उन्हें आमतौर पर त्वचा रोग मानकर वाह्य उपचार किए जाते हैं। जिससे तात्कालिक लाभ होता है।
आलाप यह श्वेत चर्मियो को संपूर्ण समर्पित प्रकल्प है। जिसके अंतर्गत काबरा दंपत्ति के इलाज की सुविधा उपलब्ध कराई जाती है। इसके अलावा रोगियो के लिए श्वेत सहयोग विवाह सेवा, रोजगार सहाय, मानसिक समुपदेशन सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती है।