जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली : पंजाब के बाद कांग्रेस की दलित राजनीति को हरियाणा में भी झटका लगता दिख रहा हैं। क्योंकि, खबरों के मुताबिक प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और दलित समाज से आने वाली पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी शैलजा ने पार्टी के दूसरे गुट के दबाव में अपने पद इस्तीफे की पेशकश कर दी है। यह दबाव किसी और की ओर से नहीं, बल्कि पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा के खेमे का बताया जा रहा है। दरअसल, शैलजा को लग रहा है कि वह प्रदेश में संगठन के फैसले स्वतंत्र रूप से नहीं ले पा रही हैं और ना ही आलाकमान उनकी सहायता ही कर पा रही है। गौरतलब है कि हुड्डा कांग्रेस के खिलाफ असंतोष जाहिर करने वाले जी-23 नेताओं में भी शामिल रहे हैं।
रविवार को ही बीएसपी प्रमुख मायावती ने दलित राजनीति को लेकर कांग्रेस को कठघरे में खड़ी करने की कोशिश की है। उन्होंने आरोप लगाया है कि अपने पिता राजीव गांधी की तरह ही राहुल गांधी भी दलितों की पार्टी को बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं। पंजाब में कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व ने चरणजीत सिंह चन्नी जैसे दलित चेहरे को सीएम फेस बनाकर सत्ता में दोबारा वापसी का चांस मारा था। लेकिन, आलाकमान की ओर से इस बात का भरपूर प्रचार किए जाने के बावजूद प्रदेश कांग्रेस के कई नेताओं ने उन्हें दिल से स्वीकारने में परहेज किया। नतीजा कांग्रेस को राज्य में बहुत करारी शिकस्त मिली। अब पड़ोसी राज्य हरियाणा में भी एकबार फिर से दलित राजनीति के मुद्दे पर कांग्रेस नेतृत्व दोराहे पर खड़ा है।
पार्टी की वरिष्ठ नेता कुमारी शैलजा ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात कर के हरियाण प्रदेश कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने की पेशकश की है। कांग्रेस आलाकमान पर राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की ओर से इस बात को लेकर भारी दबाव है कि शैलजा को हटने के लिए कहें और उनकी जगह चाहे खुद उन्हें या उनके किसी चहेते को प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंप दें। जानकारी के मुताबिक हुड्डा खुद नहीं तो अपने बेटे दीपेंद्र हुड्डा के लिए भी बैटिंग कर रहे हैं। तथ्य ये भी है कि सीनियर हुड्डा कांग्रेस के उस जमात में भी शामिल हैं, जो पिछले डेढ़ साल से पार्टी नेतृत्व की नापंसदी के बावजूद संगठन में लोकतांत्रिक बदलाव की मांग कर रहा है। इस जमात ने पांच राज्यों में हाल में हुए विधानसभा चुनावों के बाद गांधी-वाड्रा परिवार की त्रिमूर्ति वाले नेतृत्व पर दबाव और भी बढ़ा रखा है।
जाट राजनीति की वजह से शैलजा पर दबाव!
कुमारी शैलजा पार्टी की एक वरिष्ठ महिला नेता होने के साथ ही साथ हरियाणा की एक प्रभावशाली दलित चेहरा भी हैं। ये कांग्रेस की फर्स्ट फैमिली के ज्यादा भरोसेमंद भी रही हैं, लेकिन अगर उन्होंने खुद से प्रदेश की अध्यक्षता छोड़ने की पेशकश की है तो हरियाणा में पार्टी के अंदर जाट राजनीति के वर्जस्व के स्तर को समझा जा सकता है। जानकारी के मुताबिक हाल ही में एक बैठक में शैलजा ने नेतृत्व से यह भी शिकायत की थी कि हुड्डा खेमे के विरोध के चलते ही नेतृत्व उन्हें ‘दलित और महिला प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष’ के तौर पर पेश करने के बावजूद प्रदेश कांग्रेस कमिटियों और जिला कांग्रेस कमिटियों की शक्ति दे पाने में नाकाम रहा है। इस बैठक में पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष और राहुल गांधी भी मौजूद थे।
प्रदेश कांग्रेस के भीतर हुड्डा कैंप के दबाव और शैलजा कैंप की मायूसी से पैदा हो रहे गतिरोध को सुलझाने के लिए पार्टी प्रमुख ने अपने दूतों को भी हरियाणा कांग्रेस के प्रमुख नेताओं से बातचीत करने के लिए भेजा था। यह तब किया गया जब हुड्डा और उनके समर्थकों ने अपने साथ खड़े विधायकों की ताकत दिखाने के साथ-साथ गुरुवार को पार्टी की ओर से तेल की कीमतों के खिलाफ आयोजित विरोध प्रदर्शन से भी खुद को दूर रखा। मतलब, हरियाणा कांग्रेस में हुड्डा की ओर से पार्टी नेतृत्व पर लगातार दबाव बनाए रखने की कोशिश हो रही है और शायद यही वजह है कि शैलजा ने इस्तीफा बम फोड़ने की पेशकश की है।
हालांकि, हरियाणा में कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष बनने की रेस में पार्टी महासचिव और राहुल गांधी के खासमखास रणदीप सुरजेवाला का नाम भी शामिल माना जा रहा है। चर्चा है कि भूपेंद्र हुड्डा, प्रदेश कांग्रेस की कमान मिलने की सूरत में किसी गैर-जाट नेता को हरियाणा विधानसभा में विपक्ष का नेता बनाने के लिए रास्ता देने के लिए तैयार हैं। लेकिन, कांग्रेस में कोई बी आखिरी फैसला आलाकमान पर ही पर निर्भर है। पंजाब में जोखिम का नतीजा देखने के बाद, वह हरियाणा में क्या निर्णय लेता है, इससे भविष्य में पार्टी की दलित राजनीति तय हो सकती है।