जनजीवन ब्यूरो
नई दिल्ली । पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री खुर्शीद महमूद कसूरी की पुस्तक में ऐसा क्या लिखा गया है जो शिवसेना के कार्यकर्ता विरोध कर रहे हैं। दरअसल किताब लिखी बातें सच्चाई से कोसों दूर है जिसके कारण शिवसेना विरोध करने पर उतारू हैं। शिवसैनिकों का कहना है कि जब कसूरी पाकिस्तान की हकीकत को जानते हैं तो खुलेआम विरोध क्यों नहीं कर रहे हैं।
कसूरी की लिखी पुस्तक ‘नाइदर ए हॉक, नॉर ए डव : एन इनसाइडर्स एकाउंट्स ऑफ पाकिस्तान फॉरेन पॉलिसी’ में कबाइली इलाकों में आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए मदरसों के फलने-फूलने का जिक्र है। कसूरी ने अपनी किताब में सामाजिक क्षेत्र खासकर शिक्षा में पाकिस्तान सरकार को विफल करार दिया। कसूरी ने अपनी किताब में बताया है कि पाकिस्तान कट्टरवाद की बड़ी कीमत चुका रहा है। यह भी दावा किया गया है कि आतंकवाद में लिप्त रहे लोगों का पाकिस्तान पुर्नवास करा रहा है।
क्या भारत ने सात साल पहले ही पाकिस्तान में घुसकर लश्कर-ए-तैयबा के हेडक्वार्टर को तबाह करने की तैयारी कर ली थी। अगर हां तो फिर वो योजना पूरी क्यों नहीं हुई? पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री कसूरी ने इस मामले में भी बड़ा खुलासा किया है। कसूरी की किताब में 26/11 के हमले का बदला लेने की सबसे बड़ी तैयारी का पूरा ब्यौरा भी दिया गया है।
कसूरी ने अपनी इस किताब में भारत के हर नागरिक के लिए सबसे अहम सवाल का जवाब दिया है कि क्या वाकई भारत ने लश्कर से मुंबई हमले का बदला लेने की कोई ठोस योजना कभी नहीं बनाई? किताब में इस सवाल का जवाब दिया गया है कि योजना भी बनी थी और पाकिस्तान डर से कांप भी उठा था।
किताब में साल 2008 के दिसंबर महीने की एक मुलाकात का जिक्र है। कसूरी लिखते हैं कि वो तब विदेश मंत्री पद से मुक्त हो चुके थे, उन्हें एक अमेरिकी डिप्लोमेट का फोन आया कि कुछ लोग अमेरिका से आ रहे हैं और वो उनसे मुलाकात करना चाहते हैं। पहले थोड़ी देर के लिए बातचीत होगी और फिर वो दोपहर का खाना साथ खाएंगे। कसूरी के मुताबिक जिस अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल के साथ दोपहर के खाने पर उनकी मुलाकात हो रही थी वो बेहद ताकतवर लोगों का समूह था और उन्हें तभी लग गया था कि कुछ बेहद संवेदनशील है जिसके बारे में वो उनसे बात करने आ रहे हैं।
दरअसल उस मुलाकात में अमेरिका के सांसद जॉन मेक्कन, सांसद लिंडसे ग्राहम और अफगानिस्तान-पाकिस्तान में ओबामा की सेलेक्ट कमेटी के सदस्य रिचर्ड हॉलब्रूक शामिल हुए थे। हालांकि इस किताब में पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री खुर्शीद महमूद कसूरी और तीन अमेरिकी प्रतिनिधियों के बीच मुलाकात कहां और कब हुई, इसका खुलासा नहीं किया गया है। लेकिन जो बात हुई उसका नाता भारत की उस तैयारी से था, जिसके मुताबिक भारत लश्कर को मिटाने की योजना बना रहा था।
पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री जिस मुरीदके का जिक्र अपनी किताब में करते हैं, वो लश्कर-ए-तैयबा का मुख्य ठिकाना था। भारत की सुरक्षा एजेंसियों ने आतंक की उस पनाहगाह को हमेशा के लिए मिटाने की तैयारी कर ली थी। सीमाओं पर सेना की तैनाती तो कर ही दी गई थी, लेकिन इरादा था एक गोपनीय हवाई हमले का।
भारत की इस तैयारी के बारे में एक निजी खुफिया एजेंसी ने 19 दिसंबर 2008 को एक रिपोर्ट भी प्रकाशित की थी, जिसके मुताबिक भारतीय सेना पाकिस्तान में हमले की पूरी तैयारी कर चुकी है और अब सिर्फ राजनीतिक फैसले का इंतजार कर रही है। इस बार भारतीय सेना की तैयारी पहले जैसी नहीं है, बल्कि इस बार हमला तेज और गोपनीय तरीके से किया जाएगा। कसूरी के मुताबिक इस रिपोर्ट के सामने आने के दो हफ्ते पहले ही यानी 7 दिसंबर साल 2008 के आसपास अमेरिकी सांसद जॉन मेक्कन ने भारत की ओर से हवाई हमले का जो इशारा किया था, उससे वो चौंक गए थे।
किताब में ये भी ज़िक्र किया गया है कि इसके बाद कसूरी ने जॉन मेक्कन को जवाब दिया कि मुझे पूरा यकीन है कि पाकिस्तान की सेना फौरन पूरी ताकत से मुरीदके पर होने वाले हमले का जवाब देगी। मैं आपको एक उदाहरण देता हूं। मई 1998 में भारत के परमाणु परीक्षण के बाद हमारे प्रधानमंत्री नवाज शरीफ पर पूरी दुनिया दबाव डाल रही थी कि हम परमाणु परीक्षण ना करें। खास तौर पर अमेरिका का दबाव था। यहां तक कि नवाज शरीफ को तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने बदले में पाकिस्तान को ढेरों तोहफे देने का वादा भी किया था, लेकिन क्या हुआ। दरअसल देश में माहौल था कि या तो नवाज बम फोड़ेगा या फिर बम उसको फोड़ेगा।
कसूरी ने आगे कहा कि क्या आप ये वादा कर सकते हैं कि इस जवाब के बाद भारत की सेना आगे कोई कार्रवाई नहीं करेगी? इस पर जॉन मेक्कन ने जवाब दिया कि चलिए मान लीजिए भारत चुप नहीं बैठता तो फिर क्या होगा? कसूरी ने साफ कर दिया कि इसके बाद जो होगा उस पर किसी का बस नहीं चलेगा। सब बेकाबू हो जाएगा।
अमेरिका के प्रतिनिधिमंडल के सामने जो तस्वीर थी, वो बेहद भयावह थी। लगातार मीडिया में रिपोर्ट आ रही थी कि सरहद के दोनों तरफ सेना की तैनाती लगातार बढ़ रही है। दक्षिण एशिया में एक जंग की सारी आशंकाएं पलने लगी थीं। इसके बाद क्या हुआ किसी को नहीं पता, लेकिन लश्कर के मुरीदके कैंप पर हवाई हमले करने का सपना कभी पूरा नहीं हुआ।