जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली : महंगाई डायन खाए जात है। मंगलवार को जारी सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश का रिटेल इन्फ्लेशन मार्च में 6.95 फीसद रहा है। यह बढ़ोतरी खाने की चीजों के दाम बढ़ने के कारण हुई। फरवरी में यह आंकड़ा 6.07 फीसद था। महंगाई का आकलन कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स से होता है। खाद्य मुद्रास्फीति फरवरी में बढ़कर 7.68% हो गई। जबकि इससे पहले यह 5.85% पर थी। खुदरा मुद्रास्फीति के आंकड़ों को लेकर निवेशक चिंतित हो सकते हैं क्योंकि यह लगातार तीसरे महीने रिजर्व बैंक के मुद्रास्फीति की दर के अनुमान से ऊपर है। खाद्य कीमतों में उछाल रूस-यूक्रेन युद्ध से संबंधित आपूर्ति श्रृंखला में अवरोध आने से आया है। इससे वैश्विक अनाज उत्पादन, खाद्य तेलों की आपूर्ति और उर्वरक निर्यात बाधित चल रहा है। खाद्य कीमतें मुद्रास्फीति बास्केट का लगभग आधा हिस्सा हैं।
सर्वेक्षण के मुताबिक, हाल के दिनों में सब्जियों के दाम बढ़ने के चलते भारत के 87 फीसदी परिवारों पर असर पड़ा है। रिपोर्ट के अनुसार, पिछले एक महीने में देश के हर 10 में से नौ घरों ने सब्जियों की बढ़ती कीमतों का असर महसूस किया है।
311 जिलों में किया गया सर्वेक्षण
यह सर्वेक्षण लोकलसर्किल द्वारा किया गया है और इसमें देशभर के 311 जिलों में रहने वाले परिवारों से सवाल-जवाब किया गया। रिपोर्ट में 11,800 परिवारों की प्रतिक्रियाओं को शामिल किया गया। इन प्रतिक्रियाओं के आधार पर दावा किया गया है कि मार्च से सब्जियों की बढ़ती कीमतों से लगभग 87 प्रतिशत भारतीय परिवार प्रभावित हैं। इनमें से 37 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि वे सब्जियों पर 25 प्रतिशत से अधिक के बढ़े हुए खर्च का अनुभव कर रहे हैं। सर्वेक्षण के परिणाम इस बात का उदाहरण हैं कि पिछले महीने कुछ सब्जियों की कीमतें आसमान छू गई थीं। नीबू ने तो लोगों को दम ही निचोड़ दिया है।
सर्वे रिपोर्ट में ये आंकड़े आए सामने
सर्वेक्षण में शामिल 36 फीसदी उत्तरदाताओं ने कहा कि वे सब्जियों पर बीते एक महीने से 10 से 25 फीसदी अधिक भुगतान कर रहे हैं। हालांकि, इसमें शामिल 14 फीसदी परिवारों का कहना था कि वे पिछले महीने की तुलना में अब उतनी ही मात्रा में सब्जियों के लिए 0 से 10 प्रतिशत अधिक भुगतान कर रहे हैं। इसके अलावा सर्वे में शामिल कम से कम 25 प्रतिशत परिवारों को मानना था कि उन्हें एक महीने से सब्जियों पर 25 से 50 प्रतिशत तक अधिक खर्च करना पड़ा है, जबकि अन्य पांच प्रतिशत लोगों का मानना था कि उन्हें मार्च की तुलना में सब्जियों की समान मात्रा के लिए अतिरिक्त 50 से 100 प्रतिशत अतिरिक्त जेब ढीली करनी पड़ी।
64 फीसदी पुरुष, 36 फीसदी महिलाएं
रिपोर्ट के अनुसार, इस सर्वे में भारतीय नागरिकों को उनके मान्य दस्तावेजों के आधार पर पंजीकृत किया गया था। इसमें करीब 64 फीसदी उत्तरदाता पुरुष थे, जबकि 36 फीसदी उत्तरदाता महिलाएं थीं। इसके अलावा इनमें से 48 फीसदी टियर-1 शहरों से और 29 फीसदी टियर-2 शहरों से थे। वहीं शेष 23 प्रतिशत उत्तरदाता टियर-3 और टियर-4 शहरों और ग्रामीण जिलों के रहने वाले थे। सर्वेक्षण में शामिल सात प्रतिशत लोगों ने दावा किया कि वे समान मात्रा के लिए दोगुने से अधिक राशि का भुगतान कर रहे हैं। सर्वे में महज चार फीसदी लोग ऐसे थे जिनका मानना था कि कीमतें अपरिवर्तित रहीं है और सात फीसदी लोगों ने कहा कि वे तब और अब की कीमतों में अंतर नहीं कर पा रहे हैं।
खाद्य तेल की कीमतों का असर
जहां एक ओर सब्जी की कीमतें बढ़ने से रसोई का बजट गड़बड़ा गया है तो दूसरी ओर खाद्य तेलों के दाम में इजाफे ने भी आग में घी डालने का काम किया है। इस संबंध में जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, करीब 29 फीसदी भारतीय परिवारों ने अपने द्वारा उपयोग किए जाने वाले खाद्य तेल की मात्रा में कटौती की है। वहीं कच्चे माल की कीमतों में वृद्धि के साथ बढ़ी कीमतों के चलते 17 फीसदी ने इस पर होने वाले खर्चा को कम कर दिया है। लोकलसर्किल के अनुसार, हर दो में से एक परिवार तेल के मामले में बचत कर रहा है। बता दें कि बीते कुछ समय में सूरजमुखी, मूंगफली का तेल और कैनोला सहित खाना पकाने के तेलों की कीमतें पूर्व-कोविड स्तरों पर 50 से 70 फीसदी तक बढ़ गई हैं, इसमें रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते बने भू-राजनीतिक हालातों की अहम भूमिका है।
स्वास्थ्य जोखिम बढ़ा रही महंगाई
रिपोर्ट के मुताबिक, भारत लगभग 85 फीसदी सोयाबीन तेल अर्जेंटीना और ब्राजील से आयात करता है। इसके अलावा 90 फीसदी सूरजमुखी तेल रूस और यूक्रेन से आयात किया जाता है। जबकि इंडोनेशिया और मलेशिया भारत को पाम तेल के प्रमुख निर्यातक हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि खाद्य तेलों की कीमतों में उछाल परिवारों के बजट और खपत के पैटर्न को प्रभावित कर रहा है। पिछले 12 महीनों में खाद्य तेल की कीमतों में भारी वृद्धि के साथ, आधे परिवारों ने कहा कि वे पहले की तरह ही खपत कर रहे हैं, जबकि आधे हर महीने अधिक भुगतान का अनुभव कर रहे हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि खाद्य तेलों की कीमतों में वृद्धि निम्न और मध्यम आय वाले परिवारों को सस्ते और निम्न गुणवत्ता वाले तेलों को चुनने के लिए मजबूर कर रही है, जिससे संभावित रूप से स्वास्थ्य जोखिम हो सकता है। यहां बता दें कि पिछले साल दिसंबर में, सरकार ने कमोडिटी की कीमतों पर लगाम लगाने के लिए रिफाइंड पाम तेल पर आयात शुल्क को 17.5 फीसदी से घटाकर 12.5 फीसदी कर दिया था।
पाम तेल की कीमतों में इस साल लगभग 50% की वृद्धि
दुनिया में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाले वनस्पति तेल पाम तेल की कीमतों (Palm Oil Prices) में इस साल लगभग 50% की वृद्धि हुई है। खाद्य कीमतों में वृद्धि से सबसे ज्यादा गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लाखों लोग प्रभावित हो रहे हैं, जो पहले से ही Covid महामारी के कारण नौकरियों से हाथ धो चुके हैं।
औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) फरवरी में 1.7% बढ़ा
इस बीच, औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) फरवरी में 1.7% बढ़ा, जबकि जनवरी में यह आंकड़ा 1.3% था। पिछले साल दिसंबर में आईआईपी ग्रोथ 10 महीने के निचले स्तर 0.4 फीसदी पर आ गई थी। बता दें कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने बीते हफ्ते अपनी मौद्रिक नीति की पहली समीक्षा में महंगाई के अनुमान को बदल दिया है। उसके मुताबिक रूस-यूक्रेन लड़ाई बड़ा प्रभाव डाल रही है। इसस कच्चे तेल, पाम ऑयल और दूसरे सामान की सप्लाई पर असर पड़ा है। कीमतें लगातार ऊंची बनी हुई हैं और यह वैश्विक इकोनॉमी के लिए खतरनाक स्थिति है।