जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली : हरियाणा कांग्रेस में बदलाव अब लगभग तय दिख रहा है। मंगलवार को हरियाणा मामलों के प्रभारी विवेक बंसल ने पार्टी के राष्ट्रीय संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल से मुलाकात की। बताते हैं कि बंसल ने वेणुगोपाल को हरियाणा को लेकर अपनी रिपोर्ट दे दी है। इससे पहले विवेक बंसल ने सोमवार को पार्टी की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात की थी। सोनिया को हरियाणा की राजनीतिक हालात को लेकर बंसल ने सोनिया को ब्रीफ किया था। बताते हैं कि सोनिया गांधी ने विवेक बंसल को केसी वेणुगोपाल से मुलाकात करने और अपनी रिपोर्ट देने को कहा था। इसी कड़ी में बंसल ने वेणुगोपाल से मुलाकात की। अहम बात यह है कि बंसल की मुलाकात के बाद कांग्रेस वर्किंग कमेटी के विशेष आमंत्रित सदस्य कुलदीप बिश्नोई ने भी वेणुगोपाल से मुलाकात की। विवेक बंसल करीब 20 मिनट तक वेणुगोपाल की कोठी पर रहे।
पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा व मणिपुर विधानसभा चुनावों में करारी हार के बाद पार्टी नेतृत्व काफी दबाव में नज़र आ रहा है। इन चुनावों से पहले कांग्रेस नेतृत्व ने हरियाणा में बदलाव से साफतौर पर इनकार कर दिया था लेकिन अब वह इसके लिए राजी हो चुका है। हाईकमान के निर्देशों के बाद ही विपक्ष के नेता व पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा को प्रदेश कांग्रेस की कमान देने की पेशकश की जा चुकी है।
हुड्डा प्रदेशाध्यक्ष बनने के लिए तैयार भी हो गए हैं लेकिन वे कांग्रेस विधायक दल के नेता का फैसला विधायकों द्वारा किए जाने का पेच फंसा चुके हैं। उन्होंने नेतृत्व को दो-टूक कह दिया है कि उनके प्रधान बनने की सूरत में सीएलपी लीडर का फैसला विधायकों पर छोड़ा जाना चाहिए। इससे पहले कांग्रेस द्वारा किरण चौधरी को भी विधायक दल का नेता बनाया जा चुका है। 2014-2019 की टर्म के दौरान इनेलो विधायकों के भाजपा में शामिल होने के बाद राजनीतिक हालात बदल गए थे।
ऐसे में अभय सिंह चौटाला को विधायक दल को छोड़ना पड़ा था और कांग्रेस विधायकों के दबाव के चलते किरण चौधरी की भी कुर्सी जाती रही थी। उस समय हुड्डा को सीएलपी लीडर बनाया गया था। 2019 में पार्टी के 31 विधायक आए तो हुड्डा के पास ही सीएलपी की कमान रही। हालांकि हुड्डा सीएलपी का पद छोड़ने को राजी नहीं हैं लेकिन प्रधान बनाए जाने क स्थिति में वे इसके लिए भी राजी हो गए। नेतृत्व कुलदीप बिश्नोई को सीएलपी लीडर बनाना चाहत है लेकिन हुड्डा कैम्प के विधायकों को यह मंजूर नहीं है।
बहरहाल, दिल्ली में बैठकों का दौर जारी है और फैसला निर्णायक मोड़ में पहुंच चुका है। अब देखना यह होगा कि पार्टी नेतृत्व राज्य में जाटों और गैर-जाटों में कैसे संतुलन बनाता है। हाईकमान यह समझ चुका है कि हुड्डा को इग्नोर करना आने वाले दिनों में और महंगा पड़ सकता है। ऐसे में यह तय-सा हो चला है कि बदलाव की इस कवायद में हुड्डा के हाथों में बहुत कुछ आने वाला है। यह भी कह सकते हैं कि एक तरह से हुड्डा को ‘फ्री-हैंड’ भी दिया जा सकता है।