जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली। स्वतंत्रत के 75 वीं वर्षगाठ और देश में आजादी का अमृत मोहोत्सव का दौर जारी है, लेकिन बिहार के मघुबनी जिला स्थित बलिराजगढ़ का किला इस उम्मीद में है कि मोदी सरकार का कोई रहनुमा उसका सुघ लेने जरूर आएंगे। इतिहासकारों का मानना है कि यह किला ईसा पूर्व से शुंग,पाल वंश के कई अवशेष को अपने भीतर संजोए हुए है। पुरातत्व विभाग की खुदाई में टेराकोटा, मूर्ति,शंख, चूड़ी जैसे कई अवशेष मिले हैं जिसपर फिलहाल अध्ययन जारी है। आशा की जा रही है कि अध्ययन के बाद कई राज जो दफन है,वह बाहर आएंगे।
स्थानीय लोगों का मानना है कि देश के तत्कालीन प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद ने किले की महत्ता को समझते हुए कई एकड़ जमीन समर्पित कराया। यही कारण है कि आज यह किला विरासत की सूची में शामिल है। मगर अधिकारियों की उदासीनता के कारण किला अपने बदहाली पर आंसू बहा रहा है।
आजादी के अमृत महोत्सव में किले की महत्ता को लेकर झंझारपुर से सांसद रामप्रीत मंडल ने केंद्रीय पर्यटन मंत्री जी.किशन रेड्डी को सारी परिस्थितियों से अपने पत्र के द्वारा समझाने की कोशिश की है। सांसद मंडल ने बताया कि मंत्री ने किले से संबंधित सभी समस्याओं के समुचित निदान का आश्वासन दिया गया है।
भगवान का 3 पग और राजा बलि का संकल्प को लेकर चर्चा
सांसद मंडल के मुताबिक पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित 175 एकड़ के इस किले की खुदाई 2014 में हुई थी। उस समय कई अवशेष मिले थे जिसमें सिक्के, मूर्तियां और मिट्टी का टेराकोटा समेत करीब 400 अवशेष को पूरातत्व विभाग ने संरक्षित रखा है। इन अवशेषों पर अध्ययन जारी है। उनका कहना है कि नेपाल के तराई में बसे इसे किले के जीर्णोद्धार से न सिर्फ पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बनेगा बल्कि स्थानीय युवाओं को रोजगार और सरकार को भारी राजस्व की प्राप्ति भी होगी। उनका कहना है कि यह किला जितना ऐतिहासिक है, उतना ही पौराणिक आस्था का केंद्र बिंदू भी है। सांसद मंडल ने कहा कि स्थानीय शिक्षाविद का मानते हैं कि भगवान विष्णु इसी जगह बामन रूप में प्रकट हुए। बलिराजगढ़ किला के राजा बलि से तीन पग दान में मांगे और तीनो लोक नाप लिए। चर्चा है कि यह किला राजा जनक के राज्य का भी अहम हिस्सा रहा है। जिसमें सीता माता की कई यादें छुपी हुई है।