जनजीवन ब्यूरो / हैदराबाद : तेलंगाना में अपना जनाधार मजबूत करने के लिए बीजेपी ने काफी जोर लगा रखा है। यही वजह है कि अभी ममता बनर्जी के बाद अगर केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी से हमेशा दो-दो हाथ करने के लिए सबसे ज्यादा उतावले दिखते हैं तो वे तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ही हैं। उन्होंने केंद्र सरकार से अदावत में कोई कसर नहीं छोड़ रखी है, क्योंकि बीजेपी ने भी प्रदेश में टीआरएस सरकार को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ा है। इन सबके बीच तेलंगाना में एक चुनावी सर्वे आया है, जिसमें सत्ताधारी टीआरएस और बीजेपी के अलावा कांग्रेस और बीएसपी तक के लिए काफी कुछ संकेत मिल रहा है। तेलंगाना में चुनाव पूर्व सर्वे के चौंकाने वाले नतीजे तेलंगाना में चुनाव पूर्व सर्वे के चौंकाने वाले नतीजे तेलंगाना विधानसभा का चुनाव अगले साल होना है। लेकिन, वहां भारतीय जनता पार्टी ने अभी से चुनावी जमीन तैयार करने के लिए मेहनत शुरू कर दी है।
हाल ही में हैदराबाद में पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की एक बैठक हुई है, जिसके आखिरी दिन खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी हिस्सा लिया है। भाजपा कर्नाटक के अलावा दक्षिण के बाकी राज्यों में प्रवेश के लिए फिलहाल तेलंगाना को ही अपना प्रवेश द्वार मानकर चल रही है। पिछले साल हैदराबाद नगर निकाय चुनावों में उसे जो कामयाबी मिली है, उससे उसका जोश काफी हाई है। लेकिन, हाल ही में तेलंगाना की सभी 119 विधानसभा सीटों में एक चुनाव पूर्व सर्वेक्षण हुआ है, जिसके नतीजे सत्ताधारी तेलंगाना राष्ट्र समिति के साथ-साथ भाजपा को भी चौंका सकते हैं। सर्वे का परिणाम कांग्रेस और बसपा के लिए भी कम हैरान करने वाले नहीं हैं।
तेलंगाना में चुनाव पूर्व यह सर्वे किया है एएआरएए पोल स्ट्रैटेजिज प्राइवेट लिमिटेड ने। इसने राज्य के सभी विधानसभा क्षेत्रों का सैंपल सर्वे किया है। इसके सर्वे के मुताबिक अगर तेलंगाना में आज चुनाव हुए तो टीआरएस के वोट शेयर में 8% तक की कमी आ सकती है। जबकि, उसकी विरोधी बीजेपी के वोट शेयर में भारी बढोतरी होने की भविष्यवाणी की गई है। लेकिन, कांग्रेस के लिए बुरी खबरों का दौर इस दक्षिण राज्य में भी जारी है। 2018 में कांग्रेस दूसरे नंबर पर रही थी, लेकिन ताजा सर्वे बता रहा है कि उसके जनाधार में और गिरावट देखने को मिल सकती है। सर्वे ने यह भी भविष्यवाणी की है कि सरकार एक ही पार्टी की बनेगी और तेलंगाना में फिलहाल किसी गठबंधन सरकार की कोई संभावना नहीं है। पेंशनधारी, महिलाओं में टीआरएस की लोकप्रियता कायम पेंशनधारी, महिलाओं में टीआरएस की लोकप्रियता कायम सर्वे पर भरोसा करें तो अभी चुनाव करवाए जाने पर मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव की पार्टी टीआरएस के वोट शेयर 2018 के 46.87% से घटकर 38.88 तक आ सकता है। यानी गुलाबी पार्टी की लोकप्रियता में सेंध लगती दिख रही है, जो केसीआर को चिंता में डाल सकता है। हालांकि, सर्वे के मुताबिक आसरा पेंशनधारियों, महिलाओं और तेलंगाना में बस जाने वाले आंध्र प्रदेश के वोटरों के एक वर्ग में टीआरएस की लोकप्रियता अभी सबसे ज्यादा है। यह सर्वे 2021 के नवंबर से तीन चरणों में सभी चुनाव क्षेत्रों में करवाया गया है।
जहां तक भारतीय जनता पार्टी का सवाल है तो इसमें पार्टी के लिए काफी अच्छी खबर है। पिछले चुनाव में बीजेपी को तेलंगाना में सिर्फ 6.93% वोट मिले थे। लेकिन, मौजूदा परिस्थितियो में चुनाव होने पर उसके वोट शेयर में 23.5% इजाफा होने की संभावना है और उसे 30.48% वोट मिल सकते है। यानी टीआरएस को झटका जरूर लगता दिख रहा है, लेकिन सर्वे में उसकी ही सरकार बनने की भविष्यवाणी की गई है। लेकिन, भाजपा मुख्य विपक्षी दल के रूप में उभरती दिख रही है। जहां तक कांग्रेस की बात है तो इस राज्य में वह मुख्य विपक्षी पार्टी की भूमिका से भी बाहर होती दिख रही है। पिछले चुनाव में उसे 28.78% वोट मिले थे, लेकिन इसबार इसमें भी 5% की कमी का अनुमान है और उसे महज 23.71% वोट मिल सकते हैं। लेकिन, एक हैरान करने वाली बात ये है कि इसबार बीएसपी का भी जनाधार बढ़ने का अनुमान है और उसके वोट शेयर में 5% की बढ़ोतरी का अनुमान जाहिर किया गया है। सर्वे करवाने वाली संस्था के डायरेक्टर शेख मस्तान ने कहा कि भाजपा के केंद्र में सत्ता में होने की वजह से 18 से 35 साल की उम्र के अधिकतर युवाओं का झुकाव उसकी ओर है, चाहे उनकी जाति या धर्म कुछ भी हो। हालांकि, उनका दावा है कि 50% वोटर अभी भी टीआरएस के शासन से संतुष्ट हैं, जिनमें महिलाओं और पेंशनधारी शामिल हैं। उनके मुताबिक आंध्र प्रदेश के लोगों में अभी भी कांग्रेस और टीआरएस की प्राथमिकता है। लेकिन, 80% उत्तर भारतीयों का झुकाव बीजेपी की ओर देखा जा रहा है। जहां तक आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जनगन मोहन रेड्डी की बहन की पार्टी वाईएसआरटीपी की बात है तो उसने खम्मम और नालगोंडा जिलों में पकड़ बनानी शुरू की है।
इस सर्वे की मानें तो टीआरएस के पास 87 मजबूत उम्मीदवार हैं, जबकि कांग्रेस के पास इनकी संख्या 53 है। वहीं इस समय भाजपा के पास 29 मजबूत प्रत्याशी हैं। टीआरएस के 17 एमएलए के खिलाफ लोगों में काफी नाराजगी है, जिनमें से 13 का जीतना मुश्किल है। बाकी 4 इसीलिए जीत भी सकते हैं, क्योंकि उनके खिलाफ फिलहाल मजबूत विपक्षी उम्मीदवारों का अभाव है।