जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली । राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु पर कांग्रेस नेता अधीर रंजन की टिप्पणी ने इस संवैधानिक पद के नाम को लेकर नई बहस छेड़ दी है। उन्होंने जिस तरह से राष्ट्रपति के स्थान पर मुर्मु को राष्ट्रपत्नी कहा, कई लोग उसे संवैधानिक व्यवस्था का उल्लंघन मान रहे हैं। वहीं कई महिला अधिकार संगठन यह मांग भी करने लगे हैं कि इस पद के लिए कोई ऐसा नाम होना चाहिए, जो ज्यादा जेंडर न्यूट्रल हो, यानी उसके उच्चारण में कोई लैंगिक भेद न प्रतीत हो।
देश के इस सर्वोच्च पद के लिए शब्द प्रयोग को लेकर संविधान सभा में भी मसला उठा था। जुलाई, 1947 में इस बात पर बहस हुई थी कि प्रेसिडेंट आफ इंडिया के लिए हिंदी में क्या शब्द प्रयोग किया जाए। उस समय सरदार, प्रधान, नेता और कर्णधार जैसे कई शब्दों का विकल्प आया था। हालांकि इनमें से किसी शब्द पर सहमति नहीं बनी और अंतत: हिंदी में ‘राष्ट्रपति’ शब्द को ही अपनाया गया। ऐसे और भी पद हैं जिनमें लैंगिक आधार पर कोई भेद नहीं है। सभापति (चेयरपर्सन) और कुलपति (वाइस चांसलर) इसी का उदाहरण हैं। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि पद पर बैठने वाला पुरुष है या महिला।
अधीर रंजन चौधरी की अभद्र टिप्पणी पर हंगामा
ज्ञात हो कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु के बारे में कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी की अभद्र टिप्पणी को लेकर गुरुवार को लोकसभा में भारी हंगामा हुआ। अधीर रंजन की टिप्पणी को राष्ट्रपति का अपमान बताते हुए भाजपा ने कांग्रेस और उसकी अध्यक्ष सोनिया गांधी से माफी मांगने को कहा। इस लेकर सोनिया गांधी और स्मृति र्इरानी के बीच तीखी नोकझोंक भी हुई। अधीर रंजन चौधरी ने गलती स्वीकार करते हुए साफ किया कि उनकी जुबान फिसल गई थी।
तिल का ताड़ बना रही भाजपा
बाद में अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि दो बार राष्ट्रपति कहने के बाद तीसरी बार में उनकी जुबान से राष्ट्रपत्नी निकल गया। गैर हिंदी भाषी होने की वजह से उनसे यह चूक हुई। देश के सर्वोच्च पद के अपमान की बात वे सोच भी नहीं सकते हैं। भाजपा बेवजह इस मामले को तिल का ताड़ बना रही है। वह राष्ट्रपति से माफी मांगेंगे, पाखंडियों से नहीं। पाखंडियों से उनका इशारा भाजपा की तरफ था।