जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली : भारत ने घरेलू स्टॉक और चालू खरीफ मौसम में धान के कम पैदावार होने की आशंका को देखते हुए चावल की कुछ श्रेणियों के निर्यात पर रोक लगा दी है। यह दुनिया के कई देशों के लिए बहुत बड़ा सकंट साबित हो सकता है। क्योंकि, विश्व के चावल कारोबार में भारत की हिस्सेदारी आधी से थोड़ी ही कम रही है। जबकि, मौजूदा रोक से भारत जितना चावल निर्यात करता था, उससे लगभग आधा अब बाहर नहीं भेजा जा सकेगा। भारत के इस फैसले की जद में अपना पड़ोसी मुल्क चीन भी आ चुका है। आइए पूरी डिटेल में जानते हैं कि किस स्थिति में यह रोक लगाई गई है और इससे दुनिया के चावल खरीदारों पर क्या असर पड़ने जा रहा है।
गेहूं निर्यात पर पाबंदी के बाद चावल विदेश भेजने पर सख्ती
गेहूं निर्यात पर पाबंदी लगाने के मुश्किल से चार महीने बाद ही केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को चावल निर्यात पर अंकुश लगानी पड़ गई है। तब फसल को हुए नुकसान की वजह से सरकारी खरीद में गिरावट की वजह से पर्याप्त स्टॉक बनाए रखने के लिए गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध लगानी पड़ी थी। हालांकि, चावल निर्यात पर पूरी तरह से पाबंदी नहीं लगाई गई है, लेकिन हालात उसी तरह से बन रहे हैं, जिसमें धान उत्पादक राज्यों में मानसून की धोखेबाजी ने उत्पादन को लेकर काफी आशंका बढ़ा दी है। लेकिन, मोदी सरकार के इस फैसले से ना सिर्फ भारत पर, बल्कि विदेशों पर भी असर पड़ने वाला है।
चावल निर्यात पर किस तरह की रोक लगाई गई है?
देश से चार श्रेणियों में चावल का निर्यात किया जाता है। इनमें से दो श्रेणियों के निर्यात पर कोई रोक नहीं है। ये हैं- बासमती चावल और गैर-बासमती उसना (आधा उबला) चावल। ये दोनों चावल साबूत श्रेणी में हैं। केंद्र सरकार ने जिस चावल के निर्यात पर रोक लगाई है, वे हैं- सामान्य चावल और गैर-बासमती चावल के टुकड़े। बीते गुरुवार को वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग ने ‘उसना चावल के अलावा और बासमती चावल’ के निर्यात पर 9 सितंबर से 20% शुल्क लगाने का ऐलान कर दिया था। इसके दायरे में सारे कच्चे गैर-बासमती चावल भी आ गए, चाहे वह पूरे हों या फिर टुकड़े हों। लेकिन, उसी रात वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के डीजी फॉरेन ट्रेड ने एक और नोटिफिकेशन जारी करके टूटे चावल के निर्यात पर पूरी तरह से पाबंदी लगाने का एक और नोटिफिकेशन जारी कर दिया। मतलब चाहे गैर-बासमती चावल भी हो, अब साबूत चावल के निर्यात के लिए 20% शुल्क देना होगा। जबकि, टुकड़े वाले चावल का निर्यात तो पूरी तरह से रोक दिया गया है।
इस कदम से भारत के चावल निर्यात पर क्या असर पड़ेगा?
वित्त वर्ष 2021-22 में भारत ने रिकॉर्ड 21.21 मीट्रिक टन चावल का निर्यात किया था, जिसका मूल्य 9.66 अरब डॉलर था। लेकिन, चावल निर्यात पर ताजा रोक से करीब देश का आधा चावल निर्यात प्रभावित होगा, जिसका मूल्य पिछले साल के निर्यात की कीमत से करीब एक-तिहाई से कुछ ज्यादा होगा। इस फैसले से चावल का बड़ा स्टॉक मेंटेन करने में सहायता मिलेगी।
चावल निर्यात पर रोक का पहला कारण
इसके दो मुख्य कारण हैं। पहला- चावल उत्पादक राज्यों जैसे कि उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल के गंगा के मैदानी इलाकों में मानसूनी बारिश कम होने की वजह से धान का उत्पादन घटने की आशंका। 1 जून से 9 सितंबर तक चालू खरीफ सीजन के दौरान, किसान पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 21 लाख हेक्टेयर कम रकबे में धान की बुवाई कर पाए हैं। अगस्त के दूसरे हफ्ते तक यह अंतर 44 लाख हेक्टेयर का था। यानी बहुत बड़े रकबे में धान की बुवाई सामान्य सीजन जून-जुलाई के बाद की गई है, जिससे पैदावार और घटने की संभावना है। अगर पूरे भारत में धान की औसत पैदावार 2.7 टन प्रति हेक्टेयर के हिसाब से देखें तो उत्पादन में 6 से 12 मीट्रिक टन की कमी आ सकती है। ऊपर से अगर पंजाब हरियाणा में एक नए वायरस के प्रकोप से उपज कम रहती है तो उत्पादन में और भी गिरावट आ सकता है। इस वायरस की वजह से धान का पौधा पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाता।
चावल निर्यात पर रोक का दूसरा कारण
चावल निर्यात पर रोक लगाने का दूसरा कारण सरकार के पास खाद्यान का सुरक्षित स्टॉक बनाए रखना है। 1 अगस्त को सरकार के पास गेहूं का स्टॉक 26.65 मीट्रिक टन था, जो 14 साल में इस तारीख को सबसे कम था। हालांकि, इसी तारीख को चावल का स्टॉक 40.99 मीट्रिक टन था, जो कि पर्याप्त (हालांकि, पिछले साल यह 44.46 मीट्रिक टन) था, लेकिन खरीफ फसल की मौजूदा स्थिति को देखते हुए सरकार को चिंता करनी पड़ गई। ऊपर से प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत मुफ्त अनाज का वितरण सितंबर के बाद भी जारी रहने की संभावना है। यानी अगर गेहूं कम पड़ेगा तो सरकार चावल से जन वितरण प्रणाली को कारगर रख सकती है।
चावल के वैश्विक कारोबार में भारत का कितना योगदान है?
दुनिया के कुल चावल निर्यात में भारत की हिस्सेदारी 40% है। भारत ने पिछले साल 21 मीट्रिक टन से ज्यादा चावल विदेश भेजा था, जो कि थाइलैंड (7.2 मीट्रिक टन), वियतनाम (6.6 मीट्रिक टन) और पाकिस्तान (4.8 मीट्रिक टन) के कुल निर्यात से भी ज्यादा था। यानी चावल के लिए दुनिया की आज भारत पर बहुत ज्यादा निर्भरता है। जबकि, गेहूं के मामले में ऐसी स्थिति नहीं है और इस बार जो भी गेहूं की सप्लाई में वैश्विक संकट आई है, वह भी रूस-यूक्रेन के बीच जारी जंग की वजह से है, जो बहुत बड़े गेहूं निर्यातक और उत्पादक हैं। 2021-22 में भारत ने जब सबसे ज्यादा गेहूं बाहर भेजा था, तब भी यह 7.23 मीट्रिक टन था, जो कि दुनिया का सिर्फ 5% था।
भारत किन देशों को करता है चावल का निर्यात ?
पिछले साल भारत ने 75% से ज्यादा बासमती चावल का निर्यात ईरान और अरब प्रायद्वीप के देशों को किया था। जबकि, बाकी 10% चावल अमेरिका, यूके, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया भेजा गया था। अगर गैर-बासमती चावल की बात करें तो करीब 55% अफ्रीकन देशों जैसे कि बेनिन, आइवरी कोस्ट, सेनेगल, टोगो, गिनी, मेडागास्कर, कैमरून, जिबूती, सोमालिया और लाइबेरिया को सप्लाई हुआ था। बाकी चीन और बांग्लादेश में से प्रत्येक को 9.5% और नेपाल को 9% चावल बेचा गया था। अफ्रीका और बांग्लादेश को जो चावल निर्यात होता है, उसमें उसना चावल (जिसमें टूट का प्रतिशत कम रहता) ज्यादा होता है। लेकिन, चीन भारत से मुख्यतौर पर टूटा चावल खरीदता है, जिसपर अब पूरी तरह से रोक लग चुकी है।