जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली । बसपा के पूर्व सांसद और सबसे बड़े ब्राह्मण चेहरा सतीश मिश्र को लेकर चर्चा गरम है। पूर्व सांसद और प्रमुख रणनीतिकार कुछ समय से बड़े आयोजनों में नदारद दिख रहे हैं। चर्चा चल रही है कि सतीश चंद्र मिश्र पार्टी छोड़कर भाजपा का दामन थाम सकते हैं। हालांकि सतीश मिश्र के करीबियों का कहना है कि उनकी पत्नी की तबीयत ठीक ना होने की वजह से वर्तमान राजनीतिक क्रियाकलापों से फिलहाल दूर हैं।
सतीश चंद्र मिश्र बसपा के प्रमुख रणनीतिकारों में शामिल रहे हैं। लेकिन इस बार कर्नाटक में होने वाले विधानसभा के चुनावों में पार्टी ने उनको कोई अहम जिम्मेदारी नहीं दी। इसके अलावा उत्तर प्रदेश में होने वाले निकाय चुनावों की रणनीति बनाने में भी सतीश मिश्र की अहम भूमिका नहीं रही है। वहीं निकाय चुनावों में बसपा के पूर्व सांसद सतीश मिश्र अपने पोलिंग स्टेशन पर वोट भी नहीं डालने गए। ऐसे तमाम घटनाक्रमों के बाद उत्तर प्रदेश की सियासत में कहा यही जा रहा है कि बसपा और सतीश मिश्रा के बीच में सब कुछ बहुत सामान्य नहीं चल रहा है।
अब सबसे बड़ा सवाल इसी बात को लेकर हो रहा है कि अगर बसपा के कद्दावर नेताओं में शुमार किए जाने वाले सतीश मिश्र पार्टी में असहज महसूस कर रहे हैं, तो क्या वह कोई और पार्टी ज्वाइन कर सकते हैं। बीते कुछ समय से अगर राजनीतिक परिदृश्य को समझें, तो यह बात बिल्कुल स्पष्ट होती है कि सतीश मिश्रा का बहुजन समाज पार्टी में अब वह कद नहीं दिखता, जो कभी 2007 से 2012 के दौर में था। वह बताते हैं कि 2007 में मायावती के बाद दूसरे नंबर का सबसे बड़ा चेहरा सतीश मिश्रा ही हुआ करते थे। लेकिन बदलते वक्त और बहुजन समाज पार्टी के गिरते सियासी जनाधार के चलते धीरे-धीरे मायावती के बाद उनके भतीजे आकाश आनंद और उनके भाई का स्थान पार्टी में ऊपर होता गया और एक वक्त आया जब सतीश चंद्र मिश्र पार्टी में चौथे नंबर के नेता कहलाए जाने लगे।
उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि कभी सतीश मिश्र की बसपा में तूती बोली जाती थी। लेकिन एक वक्त ऐसा आया, जब उनके ही सबसे करीबी नेताओं को पार्टी से निकाला जाने लगा। बीते चुनावों के दौर में कभी बसपा के कद्दावर मंत्रियों में शुमार किए जाने वाले और सतीश मिश्र के सबसे करीबियों में शामिल रहे नकुल दुबे को पार्टी ने बाहर का रास्ता दिखा दिया था। कभी सोशल इंजीनियरिंग के माध्यम से बहुजन समाज पार्टी की उत्तर प्रदेश में बहुमत से सरकार बनवाने वाले सतीश चंद्र मिश्र को पार्टी ने राज्यसभा भेजकर बसपा में उनके सियासी कद का एहसास भी कराया। लेकिन बीते कुछ समय से राजनीतिक जमीन पर कुछ और ही दिख रहा है।
उत्तर प्रदेश के एक वरिष्ठ पत्रकार बताते हैं कि सतीश मिश्रा उत्तर प्रदेश में बड़े ब्राह्मण चेहरे के तौर पर बसपा में अपनी पहचान रखते हैं। वह बसपा से तीन बार राज्यसभा के सांसद भी रहे हैं। उनका कहना है कि पिछले साल सतीश मिश्रा का कार्यकाल बतौर राज्यसभा सांसद समाप्त हो गया। सियासी गलियारों में चर्चाएं इसी बात की हो रही है कि क्या सतीश मिश्रा अब बसपा छोड़कर भाजपा का दामन थामेंगे। इसी बात को लेकर उत्तर प्रदेश की सियासत में कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। कहा तो यह तक जा रहा है कि कभी सतीश मिश्र के करीबी रहे भाजपा के एक कद्दावर नेता की वजह से बहुत असहजता बनी हुई है। इसे लेकर सतीश मिश्र के एक करीबी बताते हैं कि वह बहुजन समाज पार्टी छोड़कर किसी भी दल में नहीं जा रहे हैं। उनका कहना है कि सतीश मिश्र की पत्नी की तबीयत खराब होने के चलते वह इस वक्त सियासी रूप से अपनी सक्रियता पार्टी के लिए नहीं दिखा पा रहे हैं। हालांकि पार्टी को जहां पर आवश्यकता होती है या सतीश मिश्र लगता है कि वह अपने सुझाव कहीं पर पार्टी को दे सकते हैं, तो अवश्य चर्चाएं होती हैं।
दरअसल सतीश मिश्र को लेकर इस तरीके के कयास पहली बार नहीं लगाए जा रहे हैं। कहा तो यह भी जा रहा था कि जब सतीश मिश्र के सबसे करीबी बसपा सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे नकुल दुबे को मायावती ने पार्टी से निकाल दिया था, तब भी उनके पार्टी छोड़ने की चर्चाएं शुरू हो गई थीं। इससे पहले जब मायावती ने पार्टी में अपने भाई और भतीजे को जिम्मेदारी देकर आगे बढ़ाना शुरू किया, तब भी सतीश मिश्र के पार्टी छोड़ने को लेकर कयास लगाए जाते रहे। इन सबके अलावा एक कयास तब भी लगाया गया, जब पिछले साल अप्रैल में सतीश मिश्र का बतौर राज्यसभा सांसद तीसरा कार्यकाल समाप्त हुआ। सियासी गलियारों में तब भी इस बात को लेकर चर्चाएं हो रही थीं कि सतीश मिश्र बसपा छोड़कर भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लेंगे।