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जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली। कर्नाटक चुनाव के नतीजे साफ़ साफ़ दर्शा रहे हैं कि भारतीय जनता पार्टी और खासकर प्रधानमंत्री जी और गृह मंत्री जी कि कैंपेन प्लानिंग पूरी तरह से फेल रही हैं | इसके कारण बहुत से हैं जिससे अब भारतीय जनता पार्टी और खासकर पार्टी के नेतृत्व को कड़ी सीख लेने कि आवश्यकता हैं, ताकि आगे के चुनावों और खासकर 2024 के चुनाव में पार्टी जीत हासिल आसानी से कर सकें | आज कि स्थिति को देखें तो राष्ट्रीय स्तर पर अभी भी प्रधानमंत्री मोदी के व्यक्तित्व के सामने विपक्ष का कोई भी नेता सामने खड़ा दिखाई नहीं देता | लेकिन जब राज्यों के चुनाव कि बात आती हैं तो, मामला उल्टा पड़ जाता हैं |
भारतीय जनता पार्टी आज पूरी तरह से सिर्फ और सिर्फ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चेहरे पर हर चुनाव लड़ रही हैं | इसका मुख्य कारण हैं कि भारतीय जनता पार्टी के संगठन पर पूरा भरोसा नहीं होना | ऊपर से कुछ चाटुकार जो स्वयं को बहुत बड़ा रणनीतिकार बताते हैं, सिर्फ और सिर्फ उनके भरोसे रहना | ये वो मुख्य समस्याएं हैं जिनकी आज भारतीय जनता पार्टी को काट निकालनी पड़ेगी | संगठन के राष्ट्रीय मुखिया एवं पदाधिकारी केवल रिमोट कण्ट्रोल कि तरह से काम कर रहे हैं | विजय के लिए मोदी जी के सिर पर सेहरा और हार का ठीकरा संगठन पर | कमजोर संगठन और कार्यकर्ताओं का तिरस्कार पार्टी को डूबाने कि ओर ले जा रहा हैं |
पार्टी के मुख्य कर्ता धर्ता, जमीनी हकीकत से दूर केवल कपोल कल्पित बातों और झूठे आंकड़ों के आधार पर अपनी योजनायें बना रहे हैं | ये भारत हैं जहाँ कानून बनने से पहले उसे तोड़ने के तरीके इजाद कर लिए जाते हैं | भारतीय जनता पार्टी पूरी तरह से आंकड़ों के भंवर में फंस चुकी हैं | पार्टी के कर्मठ एवं संघर्षशील कार्यकर्ताओं को नकारकर, केवल आंकड़ों के आधार पर ऐसे व्यक्तियों को प्रत्याशी बना दिया जाता हैं, जिनकी विचारधारा का ही भारतीय जनता पार्टी के मूल से ही मिलाप नहीं हो सकता |
नौकरशाही जरुरत से ज्यादा हावी
पिछले काफी समय से देखने में ये भी आया हैं कि भारतीय जनता पार्टी कि जिस स्थान पर सरकार होती हैं, वहां नौकरशाही जरुरत से ज्यादा हावी हो जाती हैं | जो कार्यकर्ता अपनी एड़ी छोटी का जोर लगा देता हैं, और समय आने पर नौकरशाहों के उलजलूल बहानों के कारण उनका कार्य नहीं होता, उस पर क्या बीतती हैं ये वही बता सकता हैं | उसके मन में ये कुंठा हो जाती हैं के जब विपक्षी पार्टी सरकार में थी तो उनका बेइंतहा शोषण हुआ, और जब हमारी सरकार आई तो हमे नियमों का हवाला दे दिया गया | ऐसी स्थिति में भारतीय जनता पार्टी का कार्यकर्ता अपने आप को ठगा महसूस करने लगा और वे निष्क्रिय भूमिका में चले गए, जबकि अन्य पार्टियों के कार्यकर्ता अधिक सक्रिय हुए हैं | केंद्रीय मंत्रिमंडल को देखे, जनता के बीच से चुन कर आये नेता मुंह देखते रह गए, और पिछले दरवाजे से आये अयोग्य व्यक्तियों को सरकार में मौका दिया गया | निर्मला सीतारमण, अश्विनी वैष्णव, हरदीप सिंह पूरी, भूपेंद्र यादव, प्रह्लाद जोशी जैसे अनेक नेता हैं, जिन्हें जनता के काम से मतलब नहीं हैं, बस अपनी ढपली अपना राग |
लोकसभा चुनाव 2019 में भारी बहुमत से सरकार बनाने के बाद से अभी तक कुल 30 राज्यों में विधान सभा चुनाव हो चुके हैं जिनमे से चार राज्य सिक्किम, उड़ीसा, अरुणाचल प्रदेश और और आन्ध्र प्रदेश में लोकसभा चुनावों के साथ साथ ही चुनाव हुए हैं | 2019 में लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद हुए हरियाणा, झारखण्ड और महाराष्ट्र तीनों ही राज्यों में भारतीय जनता पार्टी को अपनी सरकार बचानी थी, लेकिन जो हुआ वो पुरे देश ने देखा | झारखण्ड और महाराष्ट्र में सरकार पल्टी और हरियाणा में गठबंधन के बाद सरकार बन सकी | जिसमे भी सभी मुख्य विभाग दुष्यंत चौटाला कि पार्टी को दिए गए, तब जाकर गठबंधन हो सका | महाराष्ट्र में भी कमोबेश यही स्थिति बनाने कि कोशिश कि गई लेकिन शरद पंवार ने सारी बाजी पलट दी |
नरेन्द्र मोदी को एक राष्ट्रीय स्तर के नेता के तौर पर बहुत ही ज्यादा पसंद
इसका मुख्य कारण यह भी हैं कि देश के जनता प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को एक राष्ट्रीय स्तर के नेता के तौर पर बहुत ही ज्यादा पसंद करती हैं/ लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात ये भी हैं कि जब बात राज्य के चुनाव कि आती हैं तो देश का वोटर राष्ट्रीय के साथ साथ राज्य के मुद्दों को ही मुख्य मानता हैं | दिल्ली को ही देख ले, 2019 के लोकसभा चुनाव में सभी 7 सीट भारतीय जनता पार्टी को भारी मार्जिन के साथ मिली, लेकिन फरवरी 2020 में ही दिल्ली के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने भारी बहुमत हासिल किया | इस चुनाव में कांग्रेस पार्टी पूरी तरह से हाशिये पर चली गई और आम आदमी पार्टी ने 53.57% शेयर लेते हुए चुनाव जीता | क्योंकि राज्य के जनता ने राष्ट्रीय मुद्दों से अधिक क्षेत्रीय मुद्दों को अधिक तवज्जो दी |
एक राज्य भारतीय जनता पार्टी के हाथ से निकलता गया
इसके बाद एक के बाद एक राज्य भारतीय जनता पार्टी के हाथ से निकलता गया | लेकिन चमत्कार हुआ उत्तर प्रदेश में, जहाँ योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में पहली बार किसी मुख्यमंत्री ने पूर्ण बहुमत के साथ दूसरा कार्यकाल पाया हैं | आखिर ऐसा क्यों हुआ, इसके पीछे के कारणों को भी जानना बहुत आवश्यक हैं | बीजेपी हर राज्य में प्रधानमंत्री को फ्रंट फूट पर रख कर खेल रही हैं, और अन्य मुख्य नेताओं को हाशिये पर ले जाया जा रहा हैं | हाल ही के साल में हुए चुनावों को देखें तो सबसे ताजा उदाहरण हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक ही हैं | हिमाचल चुनाव में प्रेम कुमार धूमल जो कि केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर के पिता हैं और 50 सालों से हिमाचल कि राजनीती में एक अग्रिणी नाम रहे हैं, ऐसे कद्दावर नेता को दरकिनार कर जयराम ठाकुर को आगे किया | यह राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा का गृह राज्य भी हैं | लेकिन अगुवाई रही नरेन्द्र मोदी और अमित शाह कि, जिन्होंने राज्य के मुद्दों को नहीं राष्ट्रीय मुद्दों को चुनाव में घुमाने का भरसक प्रयास किया, वहीँ कांग्रेस ने स्थानीय मुद्दों पर लगातार आवाज उठाते हुए अपने पुराने स्थानीय नेताओं पर पूरा भरोसा किया और नतीजा सबके सामने हैं ही | हिमाचल में कांग्रेस ने सरकार आते ही अपने अधिकतर वादों को पूरा करने का प्रयास किया, जिससे जनता में एक स्पष्ट सन्देश गया हैं कि ये लोग बेहतर कार्य कर सकते हैं | बीजेपी और खासकर अमित शाह का रिकॉर्ड UCC और राम मंदिर के मुद्दे पर ही अटका रहा | जबकि वहां कि जनता ने OPS और रोजगार पर वोट दिया |
मुद्दा ये हैं कि बीजेपी सिर्फ और सिर्फ एक नेरेटिव बना रही हैं कि देश में केवल मात्र दो ही नेता हैं ] ये जो चाहे वो कर भी सकते हैं | जिसके कारण स्थानीय नेताओं को पार्टी दूर करती जा रही हैं | और इसका सीधा सीधा असर राज्य के चुनावों में भी पड़ रहा हैं | यही स्थिति कर्नाटक में हुई, बीएस येदुरप्पा को दरकिनार करने का प्रयास किया गया, लेकिन वह संभव नहीं हो सका | और जब तक उन्हें वापस लाने का कार्य किया तब तक देर हो चुकी थी | कांग्रेस ने सिद्धारमैया और शिवकुमार को पूरी छूट दी और उन्होंने बेहतरीन रिजल्ट दिया | जहाँ हिमाचल में जे.पी. नड्डा जी कि छवि को भारी नुकसान हुआ वहीँ मल्लिकार्जुन खड्गे ने कर्नाटक में अपना परचम लहरा दिया |
राजस्थान में वसुंधरा राजे , मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान को हटाने कि बात कि जा रही हैं
राजस्थान में वसुंधरा राजे को पीछे किया जा रहा हैं, मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान को हटाने कि बात कि जा रही हैं, छत्तीसगढ़ में रमण सिंह को तो बिलकुल ही बर्फ में लगा दिया गया हैं | नरेन्द्र मोदी और अमित शाह अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए सभी स्थापित नेताओं को सक्रिय राजनीती से दूर करने का कुप्रयास कर रहे हैं | जिसका नुकसान बीजेपी को ही उठाना पड़ रहा हैं | हरियाणा में राव इन्द्रजीत सिंह को दूर करने के लिए उनके क्षेत्र में भूपेंद्र यादव को भेजा जा रहा हैं, बिहार में सुशिल मोदी सरीखे कर्मठ कार्यकर्ता को हटा कर नित्यानद राय सहित अन्य नेताओं को आगे करने का प्रयास हो रहा हैं |
बीजेपी के शीर्ष दो नेताओं के द्वारा न तो सेकंड लाइन ऑफ़ लीडरशिप बनाई जा रही हैं, और जो हैं उसे खत्म किया जा रहा हैं | जोकि बीजेपी के लिए ही घातक साबित हो रहा हैं, जिसके आंकड़े राज्य दर राज्य सामने आ रहे हैं | जिस राज्य में भारतीय जनता पार्टी के द्वारा स्थानीय मुद्दों और स्थानीय नेताओं के चेहरों पर चुनाव में उतरा गया, वहां उन्हें पूर्ण बहुमत मिला हैं, चाहे वो उत्तर प्रदेश हो या उत्तर पूर्व के राज्य | अब सब कहेंगे के गुजरात में भी तो नरेन्द्र मोदी जी के नाम पर चुनाव हुआ और जीते भी, बिलकुल सही हैं लेकिन नरेन्द्र मोदी जी और अमित शाह दोनों ही गुजरात के स्थानीय नेता ही तो हैं | जिसके कारण ही वे गुजरात में चुनाव जीत सकें हैं |
अब आगे होने वाले चुनावों और खासकर राजस्थान, मध्य प्रदेश, और छत्तीसगढ़ के लिए बीजेपी को विशेष प्लान बना ही होगा | राजस्थान में उन सभी प्रभावी नेताओं को और मजबूत करना होगा जिनकी जनता के बीच स्वीकारोक्ति हैं, न कि ऐसे नेताओं को धोपा जावे जो अपने घर में भी नहीं पहचाने जाते |
राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के जनजातीय वोटर को लुभाने का भरसक प्रयास
आज नरेन्द्र मोदी राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के जनजातीय वोटर को लुभाने का भरसक प्रयास कर रहे हैं | देश का सर्वोच्च पद पर भी इसी सोच के साथ एक आदिवासी समुदाय से सम्बन्ध नेता को सौंपा गया हैं | पूर्व में भी एक दलित समुदाय के नेता को राष्ट्रपति पद पर आसीन किया गया था | लेकिन देखा जावे तो इसका कितना लाभ बीजेपी को मिला इसका भी आंकलन किया जाना अत्यंत आवश्यक हैं | कर्नाटक में दलित और आदिवासी समुदाय का एक बड़ा हिस्सा कांग्रेस के पक्ष में मतदान करके गया हैं | जिससे साफ़ जाहिर हैं कि वहां आमजन ने स्थानीय दलित नेता मल्लिकार्जुन खड्गे को देखते हुए वोट दिया हैं | राजस्थान में भी आदिवासी समुदाय को आकर्षित करने के लिए स्थानीय नेताओं को आगे लाना होगा, जिनकी जनता के बीच स्वीकारोक्ति हो उन्हें, अन्यथा वही ढाक के तीन पात होंगे | किरोड़ीलाल मीणा जैसे आदिवासी नेताओं का प्रभाव राजस्थान के साथ साथ मध्यप्रदेश में भी हैं |
आंकड़ों के साथ साथ जमीनी हकीकत का भी ज्ञान यहाँ अत्यंत आवश्यक हैं | और राष्ट्रीय मुद्दों को राष्ट्रीय नेता उठाये और क्षेत्रीय मुद्दों को क्षेत्रीय नेता, तभी भारतीय जनता पार्टी का भविष्य में सही मायने में फिर से वर्चस्व स्थापित हो सकता हैं | क्योकि ये पब्लिक हैं, और ये सब जानती हैं |
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