जनजीवन ब्यूरो /नई दिल्ली । सामना में लिखा गया, ‘महाराष्ट्र की राजनीति में तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने अपना काफिला घुसा दिया है। कल तक यही के.सी.आर. घोर बीजेपी विरोधी के तौर पर खड़े थे। महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे और शरद पवार से मिलकर गए। उन्हीं महाशय ने अब यू-टर्न ले लिया है। वो महाराष्ट्र में बीजेपी की मदद के लिए ही घूम रहे हैं। महाराष्ट्र की राजनीति किसी दौर में प्रगतिशील विचारों का मजबूत गढ़ हुआ करती थी। बाहरी विचारों के कीड़े यहां नहीं घुसते थे। अब महाराष्ट्र की अवस्था ढहते किले की तरह हो गई है।
‘सीएम पद पर कौन बैठना चाहता है, ये अब केसीआर तय करने लगे हैं’
सामना में ये भी लिखा है, ”अमित शाह से लेकर तेलंगाना के सीएम के। चंद्रशेखर राव तक जो भी उठता है, वो महाराष्ट्र की राजनीति और अर्थव्यवस्था पर कब्जा करने की ख्वाहिश रखता है। यह मराठी राज्य के लिए खतरे की घंटी है। स्वाभिमानी शेतकरी संगठन के प्रमुख राजू शेट्टी ने एक बयान दिया है कि ‘चंद्रशेखर राव ने हमको महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद का ‘ऑफर’ दिया है!’ महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद पर कौन बैठना चाहता है, ये अब केसीआर तय करने लगे हैं। प्रकाश आंबेडकर और राव में भी मेल-मुलाकात हुई। ” संपादकीय में आगे लिखा है कि तेलंगाना राष्ट्र समिति केसीआर की मूल क्षेत्रीय पार्टी है। राव ने इसे ‘भारत राष्ट्र समिति दल’ में तब्दील कर दिया क्योंकि उन्हें राष्ट्रीय राजनीति में कदम रखना है। उन्हें ऐसा करने की आवश्यकता क्या थी? यह एक रहस्य ही है।
सामना में लिखा है, ”कलेश्वरम् लिफ्ट सिंचाई योजना देश में सबसे बड़ा घोटाला है और इस योजना में कम से कम 70 हजार करोड़ रुपयों की लूट हुई है लेकिन बीजेपी और केंद्र सरकार इस पर चुप्पी साधे हुए है। कलेश्वरम् सिंचाई योजना की लागत वैसे बढ़ाई गई और उसमें ‘कमीशन’ कहां घुमाया गया, ये खुला रहस्य है। वही कमीशन अब महाराष्ट्र में घुमाकर बीजेपी की मदद के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। तेलंगाना मॉडल महाराष्ट्र में लेकर आनेवाले केसीआर संघर्ष करके आगे आए नेतृत्वकर्ता हैं। उनकी काबिलियत और राज-काज की उनकी क्षमता पर संदेह व्यक्त करने की कोई वजह नहीं है, लेकिन पहले से ही बिगड़ते जा रहे महाराष्ट्र को और अधिक बिगाड़ने में वे योगदान दे रहे हैं। पैसों की सियासत ये वेश्याओं की राजनीति की तरह होती है, ऐसा दादा धर्माधिकारी ने कहा था। के.सी.आर. को ये सब टालना चाहिए। राष्ट्रीय राजनीति में आने की उनकी दिशा चुक गई है।”
कर्नाटक के नतीजों के बाद अचानक कांग्रेस पार्टी में जान आ जाती है और पार्टी का फोकस तेलंगाना पर शिफ्ट हो जाता है। तेलंगाना जिसको लेकर कुछ समय पहले तक कहा जा रहा था कि कांग्रेस कहीं मुकाबले में नहीं है। नतीजों के एक महीने बाद ऐसा होता है जब सोमवार केसीआर की पार्टी के कई नेता कांग्रेस में शामिल होने की घोषणा करते हैं। इन नेताओं ने दिल्ली में आरोप लगाया कि तेलंगाना में बीजेपी और बीआरएस के बीच गठबंधन है। विपक्षी दलों की ओर से इस बात पर और जोर तब दिया गया जब केसीआर विपक्षी दलों की मीटिंग में पटना नहीं जाते हैं। इस बीच तेलंगाना बीजेपी के अंदर कलह भी बढ़ गई है।
पूर्व सांसद पी श्रीनिवास रेड्डी और तेलंगाना सरकार के पूर्व मंत्री जुपल्ली कृष्ण राव समेत प्रदेश के 35 नेताओं ने सोमवार को कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी से मुलाकात कर पार्टी में शामिल होने की घोषणा करते हैं। तेलंगाना प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रेवंत रेड्डी ने कहा कि ये सभी नेता यहां पार्टी अध्यक्ष और राहुल गांधी से मिले हैं। हम लोग बीआरएस को हराने के लिए मिलकर काम करेंगे। रेवंत रेड्डी ने आरोप लगाया कि तेलंगाना में बीजेपी और बीआरएस के बीच गठबंधन है, जो फेविकोल के जोड़ की तरह है। कांग्रेस में शामिल होने वाले नेताओं में श्रीनिवास रेड्डी और कृष्ण राव प्रमुख हैं। रेड्डी खम्मम से लोकसभा सदस्य रह चुके हैं। कृष्ण राव तेलंगाना की के। चंद्रशेखर राव सरकार में ग्रामीण विकास मंत्री रह चुके हैं। इन दोनों नेताओं को कुछ महीने पहले पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में भारत राष्ट्र समिति से निलंबित कर दिया गया था।
BJP में बढ़ा झगड़ा, पार्टी अध्यक्ष की मीटिंग से गायब रहे दो बड़े नेता
इधर कांग्रेस में कई नेता शामिल होते हैं और उसी दिन बीजेपी विधायक एटाला राजेंदर और पूर्व विधायक कोमटिरेड्डी राजगोपाल रेड्डी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की जनसभा से नदारद रहते हैं। मीटिंग में नहीं पहुंचने के बाद इनके पार्टी छोड़ने की अटकलें लग रही हैं। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि इन दोनों नेताओं ने बीजेपी पार्टी को छोड़कर कांग्रेस में शामिल होने का मन बना लिया है। एटाला राजेंदर को एक वक्त केसीआर का राइट हैंड माना जाता था। जब दोनों के बीच विवाद बढ़ा तब एटाला राजेंदर ने विधायक पद से इस्तीफा देकर बीजेपी में शामिल हुए और फिर चुनाव लड़कर जीत भी गए। धीरे-धीरे वह पार्टी के भीतर राज्य के प्रमुख चेहरा भी हो गए। अब नाराज बताए जा रहे हैं। दूसरे नेता हैं राजगोपाल रेड्डी जिनके आने से भी बीजेपी को फायदा हुआ था।
वहीं यह भी बताया जा रहा है कि तेलंगाना बीजेपी अध्यक्ष बंदी संजय कुमार और इन दो नेताओं के बीच सबकुछ ठीक नहीं है। केसीआर से झगड़े के बाद इन दोनों नेताओं को बीजेपी से उम्मीद दिख रही थी लेकिन कर्नाटक चुनाव नतीजों के बाद कई समीकरण बदले हैं। इसके साथ ही पार्टी प्रदेश अध्यक्ष बंदी संजय कुमार और राष्ट्रीय नेतृत्व के बीच भी कुछ तालमेल की कमी दिख रही है। इन सबके बीच बीजेपी की तेलंगाना में चुनौती और बढ़ती जा रही है।
पटना में विपक्षी दलों के नेताओं की मीटिंग के बीच जेडीयू प्रवक्ता केसी त्यागी ने कहा था कि 2024 में लोकसभा चुनाव में भगवा पार्टी के खिलाफ लड़ाई में बीआरएस अध्यक्ष की ओर कोई स्पष्ट संकेत नहीं मिल रहा। वहीं इस बीच भारत राष्ट्र समिति के कार्यकारी अध्यक्ष और केसीआर के बेटे केटी रामा राव केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मिलने दिल्ली आते हैं। पटना में जब विपक्षी दल रणनीति बनाने में जुटे थे तो वहीं दिल्ली में केटीआर की यात्रा होती है। इसके सियासी मायने भी निकाले गए। तेलंगाना के आईटी मंत्री की केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात को लेकर दिल्ली से लेकर तेलंगाना तक चर्चा होती है। बीआरएस और बीजेपी एक दूसरे पर निशाना साधते रहे हैं। तेलंगाना के मंत्री दिल्ली आते रहे हैं लेकिन दिल्ली में कभी अमित शाह से मुलाकात नहीं होती। चार साल बाद दोनों की मुलाकात राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बन जाती है। केसीआर भी पिछले कुछ दिनों से केंद्र पर वैसे हमलावर नहीं दिख रहे, इसको लेकर भी सवाल उठाए जा रहे हैं।
जिस दिन कर्नाटक में चुनाव प्रचार का आखिरी दिन था उसी दिन कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा की तेलंगाना में रैली होती है। कांग्रेस महासचिव कांग्रेस की युवा संघर्ष रैली को संबोधित करने पहुंची थीं। प्रियंका गांधी वाड्रा ने तेलंगाना विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश की जनता का आह्वान किया कि वो एक ऐसी सरकार चुने जो उनके हित में काम करे। उन्होंने इस मौके पर एक युवा संकल्प भी जारी किया जिसमें बेरोजगारी भत्ते समेत युवाओं के लिए कई वादे किए गए। इस रैली में उन्होंने अपनी दादी इंदिरा गांधी का जिक्र किया। उन्हों ने कहा कि जब उन्हेंल लोग नई ‘इंदिरा अम्मा ‘ कहते हैं तो वह उसे बहुत गंभीरता से लेती हैं। यह उन्हेंह उनकी जिम्मेंदारियों का एहसास कराता है। प्रियंका गांधी ने कर्नाटक जैसे ही कई वादे यहां भी किए। कांग्रेस पार्टी के भीतर ऐसी चर्चा जोरों पर है कि प्रियंका गांधी को चुनाव में कमान दी जा सकती है।