जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली । हरियाणा से लेकर राजस्थान तक जाट समुदाय भाजपा से काफी नाराज हो गए हैं। राजस्थान के प्रत्येक विधानसभा में लगभग 30 जाट विधायक अबतक चुनकर आते रहे हैं। लेकिन राजस्थान विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी ने जितनी कमेटी बनाई है उसमें एक भी जाट को शामिल नहीं किया गया है। फिलहाल जाट समुदाय से कैलाश चौधरी, भागीरथ चौधरी, नरेंद्र कुमार, स्वामी सुमेधानंद, राहुल कस्वां और दुष्यंत सिंह सांसद हैं । पूर्व भाजपा अध्यक्ष सतीश पुनिया भी जाट समुदाय से आते हैं। जाट नेता दबी जुबान में कह रहे है कि राजस्थान भाजपा की चुनाव को लेकर कई कमेटी घोषित किए गए है। मगर उनकी भागीदारी बतौर सदस्य के रूप में शून्य कर दिया गया है। इस बाबत जाट के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि जाट समुदाय को उस समय भी काफी अघात लगा था जब टीम नड्डा में एक भी जाट नेता को समायोजित नहीं किया गया था। उनका कहना था कि टीम नड्डा में वसुंधरा राजे को उपाध्यक्ष पद देकर यह स्वीकार्यता नही बनाई जा सकती है कि जाट वर्ग को प्रतिनिधित्व दिया गया है। उनका तर्क है कि राजे की पहचान एक पार्टी कैडर और राजवाड़ा से होता है।
बहरहाल राजस्थान चुनाव को लेकर बने अभी तक प्रवक्ताओं, संकल्प और चुनाव कमेर्टी में 50 सदस्यों में एक भी सदस्य जाट वर्ग से नहीं है।
राजस्थान में जाट मतदाताओं करीब 12.5 फिसदी हैं। राजस्थान विधानसभा के 200 सदस्यों में जाट विधायक 31 है, और हर विधानसभा में लगभग 30 जाट विधायक चुनकर आते रहे हैं। जो 200 विधायकों की संख्या का 15 प्रतिशत है।
राजस्थान में तीसरी ताकत के रूप में उभर रही राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी को जाटों की पार्टी ही माना जाता है, जिसके सुप्रीमो हनुमान बेनीवाल एक मजबूत जाट नेता के रूप में उभर रहे हैं। इस प्रकार राजस्थान के तीनों बड़े दलों की कमान अब तक जाटों के कब्जे में थी। भाजपा ने अब विधानसभा चुनाव से ठीक पहले जाट को हटा कर ब्राह्मण को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है, तो उसका कारण जाट मतदाताओं का भाजपा में बिखराव है। इसके अलावा जाट मतदाता किसी पार्टी के पीछे नहीं रहते और अपने समाज के उम्मीदवार को ही वोट देते हैं, भले ही वह किसी भी पार्टी से हो या निर्दलीय हो।