जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली । करीब 30 किलोमीटर की ऊंचाई से नीचे उतरने और गति को कम करने की पूरी प्रक्रिया के दौरान जो न्यूनतम समय निकलेगा वो 17 मिनट 21 सेकंड होगा। यदि लैंडर को थोड़ा खिसक कर उतरना पड़ा तो अधिकतम समय 17 मिनट 32 सेकंड होगा। अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र के निदेशक नीलेश एम. देसाई बताते हैं कि हमारे लिए यही 17 मिनट भयावह होते हैं जिन्हें 17 मिनट्स ऑफ टेरर कहते हैं। भारत का चंद्रयान मिशन अपने लक्ष्य के बहुत करीब पहुंच गया है। आज शाम चंद्रयान-3 का विक्रम लैंडर चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करेगा। इसके बाद उसमें से प्रज्ञान रोवर निकलेगा, जो 14 दिनों तक चांद पर रिसर्च करेगा। साथ ही ये पता लगाने की कोशिश करेगा कि उसका निर्माण कैसे हुआ। वहीं लोगों के मन में ये सवाल भी उठ रहा कि अगर इसरो को भविष्य में चांद पर खनिज मिल गए, तो उसका मालिक कौन होगा? तो इसका जवाब सभी देशों ने मिलकर बहुत पहले ही तय कर लिया था।
दरअसल जब इंसान स्पेस सेक्टर में आगे की बढ़ने की सोच रहे थे, तभी सभी देशों को लग गया था कि अंतरिक्ष की संपत्ति पर एक ना एक दिन विवाद जरूर होगा। इससे बचने के लिए 5 संधियां की गईं। जिसमें एक संधि किसी ग्रह, तारे, उल्कापिंड की संपत्ति और जमीन को लेकर है। आउटर स्पेस ट्रीटी (1967) संधि के मुताबिक किसी ग्रह, तारे पर किसी भी देश का हक नहीं है। इसमें चांद भी शामिल है। उस पर भी किसी देश का अधिकार नहीं है, हालांकि उस पर कोई भी देश रिसर्च कर सकता है। संधि में साफ कहा गया कि किसी भी ग्रह, तारे आदि का व्यावसायिक इस्तेमाल नहीं हो सकता है। इस संधि से साफ हो जाता है कि अगर चांद पर सोना, चांदी या अन्य कोई खनिज मिला, तो उस पर भारत का अधिकार नहीं होगा। हालांकि वहां से रिसर्च के लिए सैंपल लाए जा सकते हैं।
चीन और अमेरिका की ‘गलत निगाह’ कुछ वक्त पहले एक रिपोर्ट आई थी, जिसमें दावा किया गया था कि चांद पर खरबों का खनिज हो सकता है। इसकी खोज में सभी देश जुटे हुए हैं, लेकिन उस पर चीन और अमेरिका की गलत नजर है। रिपोर्ट में ये भी दावा किया गया था कि दोनों देश मिलकर वहां खुदाई करने की योजना बना रहे। हालांकि ऐसा हुआ तो विवाद की स्थिति पैदा हो जाएगी।