जनजीवन ब्यूरो
नई दिल्ली । साहित्य अकादमी के बाहर साहित्यकारों के प्रदर्शन के दौरान साहित्यकार दो गुट में बंट गए। एक गुट अवॉर्ड लौटाए जाने के समर्थन में है तो दूसरा इस बात के विरोध में प्रदर्शन कर रहा है । एक सम्मान लौटाने के पक्ष में बांधी काली पट्टी तो दूसरे गुट ने सम्मान लौटानेवालों को बीमार कहा। साहित्यकारों ने मुंह पर काली पट्टी बांधकर पोस्टर और बैनर के साथ साहित्य अकादमी के बाहर प्रदर्शन किया । लेखकों ने एमएम कलबर्गी की हत्या और देश में बढ़ती असहिष्णुता के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराने के लिए साहित्य अकादमी के बाहर शांतिपूर्ण प्रदर्शन किया।
साहित्य अकादमी के बाहर साहित्यकारों के पुरस्कार लौटाने के पक्ष और विरोधी दोनों गुटों ने शांतिपूर्ण प्रदर्शन किया। साहित्य अकादमी के बाहर काफी तादाद में पुुलिस तैनात की गई है। साहित्यकारों के सम्मान लौटाने के विरोध में प्रदर्शन कर रहे लेखक डॉक्टर अरुण भगत ने कहा कि साहित्यकारों को अब ही क्यों पुरस्कार लौटाने की याद आ रही है? जब जम्मू-कश्मीर में हिंदू मारे जा रहे थे और देश आपातकाल का दंश झेल रहा था और सिखों का कत्ल किया जा रहा था तब साहित्यकारों को पुरस्कार लौटाने की याद क्यों नहीं आई?
वहीं, सम्मान लौटान के पक्ष में विरोध कर रहे लोगों का कहना है कि कहना है कि देश का सामाजिक और धर्मनिरपेक्षा ढांचा खतरे में है। ऐसे में साहित्यकारों ने अगर पुरस्कार लौटाया है तो इसमें कुछ भी अनुचित नहीं है। वरिष्ठ साहित्यकार मैत्रीय पुष्पे ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को साहित्यकारों के पुरस्कार लौटाने पर अपनी चुप्पी तोड़नी चाहिए।