जनजीवन ब्यूरो / झाबुआ : थांदला विधानसभा के मतदाता किसी भी लहर से नहीं चलते बल्कि अपने विवेक और हिसाब से तय करते हैं कि किसको जीत का ताज पहनाएंगे। इसका उदाहरण है कि यहां के मतदाता दो बार निर्दलीय प्रत्याशियों के सिर पर जीत का सेहरा बांध चुके हैं। कांग्रेस को इस सीट पर जीत के लिए पांच चुनाव का इंतजार करना पड़ा तो 10 चुनाव के बाद भाजपा का खाता खुल पाया। थांदला विधानसभा क्षेत्र भक्त मलूकदास की कर्म स्थली है। यहीं पर जैन संत युग प्रधान आचार्य प्रवर उमेश मुनि जी मसा “अणु” ने जन्म लिया। इस विधानसभा में एक तरफ गुजरात से सटा पलवाड़ क्षेत्र है जहां लबाना समाज की टोड़ी बसी। जिले का एक मात्र औद्योगिक क्षेत्र मेघनगर भी इसी विधानसभा में है।
देश और प्रदेश के राजनीतिक परिदृश्य से परे यहां के मतदाता अपने चौंकाने वाले निर्णय के लिए जाने जाते हैं। यही वजह के 1957 के पहले चुनाव में भी मतदाताओं ने निर्दलीय प्रत्याशी नाथूलाल को विजय बनाया तो वहीं 2013 के चुनाव में भी निर्दलीय उम्मीदवार कलसिंह भाबर पर भरोसा जताकर उन्हें विधानसभा में भेज दिया। वर्तमान में इस विधानसभा सीट से कांग्रेस के वीरसिंह भूरिया विधायक है। थांदला विधानसभा कुल मतदाता 265424 ं पुरुष मतदाता 132289 महिला मतदाता 133129 अन्य 6 ।
थांदला विधानसभा सीट का इतिहास
– वर्ष 1957 में थांदला विधानसभा सीट के अस्तित्व में आने के बाद हुए पहले ही चुनाव में कांग्रेस में जहां जेताजी को मैदान में उतारा तो वहीं चार निर्दलीय प्रत्याशी भी चुनाव लड़े। इस पहले चुनाव में ही मतदाताओं ने निर्दलीय प्रत्याशी नाथूलाल को 5562 मतों से जीत दिला दी। 1962 के चुनाव में एसओसी के प्रतापसिंह को मतदाताओं ने विधानसभा पहुंचाया। 1967 के तीसरे चुनाव में एसएसपी के राधूसिंह को जीत मिली। जबकि 1972 के चुनाव में एसओपी के मन्नाजी को मतदाताओं ने विजय बनाया। पहले ही चुनाव में कांतिलाल भूरिया को मिली हार 1977 के चुनाव में पहली बार झाबुआ के कद्दावर आदिवासी नेता कांतिलाल भूरिया को कांग्रेस ने थांदला विधानसभा सीट से मैदान में उतारा, लेकिन अपने पहले ही चुनाव में उन्हें हार झेलनी पड़ी। इस चुनाव में जनता पार्टी के उम्मीदवार मन्ना जी ने कांतिलाल को 4906 मतों के अंतर से हरा दिया। इसके बाद 1980, 1985, 1990 और 1993 के चुनाव में कांतिलाल भूरिया ने जीत हासिल की।
2003 में भाजपा ने खाता खोला
लगातार 10 चुनाव के बाद वर्ष 2003 में पहली बार थांदला विधानसभा सीट पर भाजपा का खाता खुला। यहां से भाजपा के कल सिंह भाबर ने जीत हासिल की। उन्होंने कांग्रेस के रतनसिंह भाबर को 9548 मतों के अंतर से पराजित कर दिया। हालांकि 2008 के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी वीरसिंह ने भाजपा के कलसिंह भाबर को हराते हुए सीट पर फिर से कांग्रेस का कब्जा जमा दिया।
टिकट कटा तो निर्दलीय उतर गए कलसिंह
2013 के चुनाव में भाजपा ने कल सिंह भाबर का टिकट काटते हुए सीसीबी के अध्यक्ष रहे गौरसिंह वसुनिया को अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया। ऐसे में कलसिंह खुली बगावत करते हुए निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतर गए। मतदाताओं ने भी उनका साथ देते हुए उन्हें 5116 मतों से जीत दिला दी। कलसिंह को कुल 63665 मत मिले। दूसरे स्थान पर रहे कांग्रेस के गेंदाल डामोर को 58549 मत प्राप्त हुए। भाजपा प्रत्याशी गौरसिंह को महज 26827 मत मिले। वे तीसरे स्थान पर रहे।
2018 में फिर से कांग्रेस ने तख्ता पलटा
2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने एक बार फिर थांदला विधानसभा सीट पर जीत हासिल की। इस बार कांग्रेस के वीरसिंह भूरिया ने भाजपा के कलसिंह भाबर को 8245 मतों के अंतर से हरा दिया। वीरसिंह को 45553 मत मिले जबकि कलसिंह को 37308 मत प्राप्त हुए।
थांदला विधानसभा क्षेत्र के प्रमुख मुद्दे
- औद्योगिक क्षेत्र का विस्तार : मेघनगर औद्योगिक क्षेत्र की नींव तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 24 अक्टूबर 1984 को रखी थी। इसके बावजूद क्षेत्र का विस्तार नहीं हो पाया है। कई औद्योगिक इकाई बंद हो चुकी हैं।
- पलायन : क्षेत्र की एक बड़ी समस्या है। पलवाड क्षेत्र से बड़ी तादात में ग्रामीण रोजगार के लिए अन्य प्रांतों में पलायन करते हैं। उन्हें स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर नहीं मिल पा रहे हैं।
- कृषि महाविद्यालय : इस क्षेत्र के युवा लंबे समय से कृषि महाविद्यालय की मांग करते आ रहे हैं। आज तक यह मांग पूरी नहीं हो पाई है।
कब, कौन रहा विधायक चुनाव
वर्ष विधायक दल 1957 नाथूलाल निर्दलीय 1962 प्रताप सिंह एसओसी 1967 राधूसिंह एसएसपी 1972 मन्नाजी एसओपी 1977 मानाजी जनता पार्टी 1980 कांतिलाल भूरिया कांग्रेस 1985 कांतिलाल भूरिया कांग्रेस 1990 कांतिलाल भूरिया कांग्रेस 1993 कांतिलाल भूरिया कांग्रेस 1998 रतनसिंह भाबर कांग्रेस 2003 कलसिंह भाबर भाजपा 2008 वीरसिंह भूरिया कांग्रेस 2013 कलसिंह भाबर निर्दलीय 2018 वीरसिंह भूरिया कांग्रेस।