जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली । 21 साल से भी ज्यादा पुराना बिलकिस बानो मामला एक बार फिर चर्चा में है। सोमवार को उच्चतम न्यायालय ने इस मामले के 11 दोषियों की रिहाई का गुजरात सरकार का फैसला रद्द कर दिया। चर्चित बिलकिस बानो मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को करारा झटका देते हुए सरकार के फैसले को पलट दिया है। कोर्ट ने दोषियों की सजा माफी रद्द कर दी है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद दोषियों को अब फिर से जेल जाना होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि जहां अपराधी के खिलाफ मुकदमा चला और सजा सुनाई गई वही राज्य दोषियों की सजा माफी का फैसला कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा दोषियों की सजा माफी का फैसला गुजरात सरकार नहीं कर सकती बल्कि महाराष्ट्र सरकार इस पर फैसला करेगी। गौरतलब है कि बिलकिस बानो मामले की सुनवाई महाराष्ट्र में हुई।
कोर्ट ने ये भी कहा कि दोषियों को रिहा करने का गुजरात सरकार का फैसला शक्ति का दुरुपयोग था। सुप्रीम कोर्ट ने सभी 11 दोषियों को अगले दो हफ्ते में जेल अथॉरिटी के सामने आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया है। बिलकिस बानो गैंगरेप के 11 दोषियों की सजा गुजरात सरकार ने माफ कर दी थी। गुजरात सरकार के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, जिस पर सुप्रीम कोर्ट आज अपना फैसला सुनाया। जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस उज्जवल भुइयां की पीठ ने मामले की सुनवाई की और 12 अक्तूबर 2023 को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
गुजरात सरकार की माफी नीति के तहत साल 2022 में बिलकिस बानो से गैंगरेप और उसके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के दोषियों की सजा माफ कर दी थी और उन्हें जेल से रिहा कर दिया था। हालांकि अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद दोषियों को फिर से जेल जाना होगा। इन दोषियों को सीबीआई की विशेष अदालत ने साल 2008 में उम्रकैद की सजा सुनाई थी, जिस पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी अपनी मुहर लगाई थी। उम्रकैद की सजा पाए दोषी को 14 साल जेल में ही बिताने होते हैं। उसके बाद अपराध की प्रकृति, जेल में व्यवहार और अन्य चीजों को ध्यान में रखते हुए सजा घटाने या रिहाई पर विचार किया जा सकता है। बिलकिस बानो गैंगरेप के दोषी जेल में 15 साल बिता चुके हैं। जिसके बाद दोषियों ने सजा में रियायत की गुहार लगाई थी। जिस पर गुजरात सरकार ने अपनी माफी नीति के तहत इन 11 दोषियों को जेल से रिहा कर दिया।
गुजरात सरकार के इस फैसले के खिलाफ 30 नवंबर 2022 को सुप्रीम कोर्ट में दो याचिकाएं दायर की गईं। पहली याचिका में दोषियों की रिहाई को चुनौती देते हुए उन्हें वापस जेल भेजने की मांग की गई थी। वहीं दूसरी याचिका में सुप्रीम कोर्ट के मई में दिए गए आदेश पर पुनर्विचार की मांग की गई थी, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि दोषियों की रिहाई का फैसला गुजरात सरकार करेगी।
अदालत ने दोषियों को दो हफ्ते के भीतर पुन: आत्मसमर्पण करने का भी आदेश दिया। ये सभी दोषी गुजरात के गोधरा में साम्प्रदायिक हिंसा के दौरान बिलकिस बानो नाम की महिला से सामूहिक दुष्कर्म और उनके परिवार के सात लोगों की हत्या के मामले में सजा काट रहे थे। इन्हें 15 अगस्त 2023 को गुजरात सरकार ने रिहा कर दिया था।
कौन हैं बिलकिस बानो
27 फरवरी 2002 को साबरमती एक्सप्रेस में गोधरा स्टेशन के पास आग लगा दी गई थी। इस घटना में अयोध्या से लौट रहे 59 श्रद्धालुओं की मौत हो गई। आगजनी की इस घटना के बाद गुजरात में दंगे भड़क उठे। इन दंगों की चपेट में आए कई परिवारों में एक बिलकिस बानो का भी परिवार था। गोधरा कांड के चार दिन बार तीन मार्च 2002 को बिलकिस के परिवार को बेहद क्रूरता का सामना करना पड़ा। उस वक्त 21 साल की बिलकिस के परिवार में बिलकिस और उनकी साढ़े तीन साल की बेटी के साथ 15 अन्य सदस्य भी थे। दंगाइयों ने बिलकिस के परिवार के सात लोगों को मौत के घाट उतारा दिया था।
27 फरवरी की घटना के बाद प्रदेश में सांप्रदायिक दंगे फैल गए। दाहोद जिले के राधिकपुर गांव में बिलकिस बानो का परिवार रहता था। दंगा बढ़ते देख परिवार ने गांव छोड़कर भागने का फैसला लिया। उस वक्त बिलकिस पांच महीने की गर्भवती थीं। वह अपने साढ़े तीन साल की बेटी सालेहा और परिवार के 15 अन्य सदस्यों के साथ गांव से भाग गईं।
3 मार्च 2002 को परिवार चप्परवाड़ गांव पहुंचा और पन्निवेला गांव की ओर जाने वाले कच्चे रास्ते से लगे एक खेत में छुप गया। अदालत में दायर आरोपपत्र के मुताबिक, सजा पाने वाले 11 दोषियों समेत करीब 20-30 लोगों ने हसिया, तलवार और लाठियों से लैस होकर बिलकिस और उनके परिवार पर हमला कर दिया। हमले में बिलकिस की साढ़े तीन साल की बेटी समेत सात लोग मारे गए।