जनजीवन ब्यूरो / पुर्णिया । भारत जोड़ो न्याय यात्रा की अगुवाई कर रहे कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने आज (30 जनवरी) पूर्णिया में जनता को संबोधित किया। नीतीश कुमार से नाता तोड़ने के बाद एनडीए में शामिल हुए नीतीश कुमार के खिलाफ राहुल गांधी ने बिना नाम लिए उनपर निशाना साधा।
दबाव बनते ही यू-टर्न ले लिया: राहुल गांधी
अभी जब अखिलेश जी का भाषण चल रहा था, तो बघेल जी ने मुझे एक चुटकुला सुनाया। आपके स्टेट के, आपके चीफ मिनिस्टर के बारे में चुटकुला है, मैं सुना देता हूं आपको, सुनना है (जनसभा ने कहाँ- हाँ सुनना है)। तो आपके चीफ मिनिस्टर गवर्नर के यहाँ स्वियरिंग के लिए गए, बड़ा धूमधाम था, वहाँ पर बीजेपी के नेता बैठे थे। गवर्नर साहब बैठे थे, सब एमएलए बैठे थे, स्वियरिंग होती है। शपथ लेते हैं चीफ मिनिस्टर की। उनके मंत्री, दो-तीन मंत्री भी शपथ लेते हैं, खूब तालियां बजती हैं और फिर नीतीश जी निकल जाते हैं, वापस सीएम हाउस की ओर चले जाते हैं। गाड़ी में पता लगता है कि वो अपना शॉल गवर्नर के घर में छोड़ आए, तो ड्राइवर से कहते हैं भईया, चलो, वापस चलो, शॉल उठाना है। तो ड्राइवर गाड़ी घुमाता है। गवर्नर के घर आता है, नीतीश जी निकलते हैं, गवर्नर के पास जाते हैं, दरवाजा खोलते हैं। गवर्नर कहते हैं भाई, इतनी जल्दी वापस आ गए।
तो ये हालत है बिहार की। थोड़ा सा दबाव पड़ता है और यू-टर्न ले लेते हैं। दबाव क्यों पड़ा, क्योंकि बिहार में हमारे गठबंधन ने एक बात जनता के सामने रखी है। इस यात्रा में हम पांच न्याय की बात कर रहे हैं। उनमें से एक न्याय, उसको आप सामाजिक न्याय कह दीजिए, उसको आप हिस्सेदारी कह दीजिए, उसको आप भागीदारी कह दीजिए, उसके बारे में हम काम कर रहे हैं। मैंने पहले भाषणों में कहा है कि इस देश में अलग-अलग वर्ग के लोग हैं। पिछड़ी जाति के लोग हैं, दलित हैं, आदिवासी हैं, माइनॉरिटी हैं, जनरल कास्ट के लोग हैं। हर समाज में कमजोर लोग हैं। ओबीसी समाज देश का सबसे बड़ा समाज है। मगर, अगर मैं आज आपसे पूछूं कि इस देश में ओबीसी समाज की आबादी कितनी है, आप इस सवाल का जवाब नहीं दे सकते।
दे सकते हैं? कोई नहीं जानता और मैं सिर्फ एक बात आपके सामने रखना चाहता हूं। आप देश के किसी भी सेक्टर को देख लो, सरकार की बात करनी है, तो मैंने पिछले भाषणों में कहा, जो देश की सरकार को चलाते हैं, 90 ऑफिसर हैं, आईएएस के ऑफिसर हैं। 90 में से तीन ओबीसी वर्ग से आते हैं और अगर 90 ऑफिसर पूरे के पूरे बजट के बारे में निर्णय लेते हैं, तो ये ओबीसी ऑफिसर 100 रुपए में से पांच रुपए का निर्णय लेते हैं। तो सरकार में ना ओबीसी की, ना दलित की, ना आदिवासी की भागीदारी है। सरकार को छोड़िए, हिंदुस्तान की सबसे बड़ी पांच सौ कंपनियों को देख लीजिए, उनकी लिस्ट निकालिए, उनके मालिकों के नाम पढ़िए। आपको उन नाम में से एक दलित, एक आदिवासी, एक पिछड़ा नहीं मिलेगा।
मीडिया को देख लीजिए, अखबारों को देख लीजिए, टीवी को देख लीजिए, एक मालिक ओबीसी वर्ग, दलित वर्ग, आदिवासी वर्ग का आपको नहीं मिलेगा। रिपोर्टर मिल जाएंगे, उनको भी कोनों में बैठा रखा है। जो उनके दिल में है, वो बोल नहीं पा रहे हैं।
मगर सीनियर मैनेजमेंट में और मालिकों में आपको एक ओबीसी, एक दलित, एक आदिवासी नहीं मिल सकता।
प्राइवेट एजुकेशन के सिस्टम को देख लीजिए, प्राइवेट कॉलेज-यूनिवर्सिटी को देख लीजिए, प्राइवेट अस्पताल देख लीजिए, एक मालिक आपको ओबीसी, दलित, आदिवासी का नहीं मिलेगा। तो मैं सिर्फ ये सवाल पूछ रहा हूं कि अगर हम सामाजिक न्याय की बात कर रहे हैं, तो ये तो स्पष्ट है कि हिंदुस्तान के किसी भी सेक्टर में पिछड़ों को, आदिवासियों को, दलितों को न्याय नहीं मिल रहा है। अब सवाल बनता है, पहला कदम क्या होना चाहिए? किसी को चोट लगती है, पहला काम, डॉक्टर कहता है, पैर में चोट लगती है, पहला काम डॉक्टर कहता है, ऐसे करो एक्सरे जाकर कर लो। एक्सरे करने के बाद साफ पता लग जाता है कि हड्डी कहाँ से टूटी है, सही बात। मैं सिर्फ ये कह रहा हूं कि समय आ गया है कि हिंदुस्तान का एक एक्सरे हो जाए। एक एक्सरे हो जाए, उसके बाद एमआरआई भी हो सकता है, मगर पहले एक एक्सरे हो जाए कि इस देश में किसकी कितनी आबादी है। लोगों की गिनती हो जाए। जनरल कास्ट के इतने लोग हैं, उसमें से अमीर इतने हैं, ओबीसी जाति के इतने लोग हैं, उसमें से अमीर इतने हैं, गरीब इतने हैं, किसान इतने हैं, मजदूर इतने हैं, भूखे इतने हैं, आदिवासी के इतने लोग हैं। इसमें आदिवासियों में अलग-अलग ट्राइब्स के इतने -इतने लोग हैं। दलित इतने हैं, इसमें दलितों में ये अलग-अलग लोग हैं, ये भूखे मर रहे हैं। ये मजदूरी कर रहे हैं, ये सड़क बना रहे हैं। बस मैं यही कह रहा हूं। सामाजिक न्याय का यही मतलब है और सामाजिक न्याय का पहला कदम देश का एक्सरे करना है।
अब बात समझिए, नीतीश जी कहाँ फंसे, मैं आपको बताता हूं। मैंने नीतीश जी से साफ कह दिया कि देखिए, आपको जाति जनगणना बिहार में करनी पड़ेगी, हम आपको छूट नहीं देंगे और आरजेडी ने, हमने ये काम नीतीश जी पर दबाव डालकर किया। अब क्या हुआ, अब दूसरी साइड से प्रैशर आया, बीजेपी नहीं चाहती कि इस देश का एक्सरे हो, डरते हैं एक्सरे से। दूध का दूध, पानी का पानी हो जाएगा। पता लग जाएगा कि कितने ओबीसी हैं, कितने दलित हैं, कितने आदिवासी हैं। बीजेपी ये नहीं चाहती। बीजेपी चाहती है कि आपका इधर ध्यान जाए, उधर ध्यान जाए, आगे-पीछे ध्यान जाता जाए, मगर सामाजिक न्याय पर गलती से भी आपका ध्यान ना चला जाए। नीतीश जी बीच में फंस गए और बीजेपी ने उन्हें निकलने का रास्ता दे दिया और नीतीश जी उस रास्ते पर निकल गए। सामाजिक न्याय देने की जिम्मेदारी बिहार में हमारे गठबंधन की है, नीतीश जी की यहाँ कोई जरूरत नहीं है। यहाँ पर हम अपना काम कर लेंगे, मिलकर हमारा गठबंधन यहाँ पर जो करना है, कर देगा। ये हुई बात सामाजिक न्याय की।
अब मैं आपसे आर्थिक न्याय की बात करना चाहता हूं। आपने अभी मुझे माला दी। मखाने वाली माला, कहाँ है वो? (स्टेज पर उपस्थित कार्यकर्ताओं से श्री राहुल गांधी ने पूछा) मैं एक मिनट में आपको आर्थिक अन्याय समझाने जा रहा हूं। ये बिहार के मखाने इतने मजेदार हैं, ये खा गए होंगे उनको। खा गए, चलो खा गए। लाओ-लाओ उसको लाओ, थोड़ा मजा भी आना चाहिए। आ रहा है? (हंसी-मजाक करते हुए श्री राहुल गांधी ने कहा) ये आ गया (मखाने वाली माला को देखकर श्री राहुल गांधी ने कहा)। ये देखो, कितनी सुंदर मखाने की माला है।
अब ये देखिए, मैं आपको मजेदार बात बताता हूं, इसको यहाँ लाइए। ये तकरीबन दस किलो का है, ठीक है। इसको यहाँ रख दीजिए (श्री गांधी ने कार्यकर्ताओं से कहा)। ये बिहार के गरीब, किसानों का खून पसीना है। सही बात है? ये बिहार के गरीब लोगों ने अपना खून-पसीना देकर, घंटों पानी में बैठकर ये हमें दिया है। दस किलो का है ये। आपको मालूम है, ये अमेरिका में कितने का बिकता है? अमेरिका में अगर आप इसे बेचोगे, जो बिक रहा है। अमेरिका में ये बड़ा बिक रहा है आजकल, वहाँ पर फैशन आ गया है कि मखाना खाएंगे, बिहार का मखाना खाएंगे। सबसे पहले उनको मालूम नहीं कि ये मखाना कहाँ से आता है, पहली बात ये है। मगर मेरा सवाल आपसे ये दस किलो की जो माला है, ये अमेरिका में कितने रुपए के लिए बिकेगी? चुप हो गए, मैंने नेट पर देखा, अभी देखा। ये माला 15 हजार रुपए के लिए अमेरिका में बिकेगी, 15 हजार रुपए दस किलो के लिए।
अब मुझे बताए इसमें से, 15 हजार रुपए में से बिहार के किसान को कितना रुपया मिल रहा है? बिहार का किसान 250 रुपए किलो में बेच रहा है। मतलब, 2500 रुपए दस किलो के लिए। ये 15 हजार रुपए, गलती की मैंने, ये 15 हजार रुपए एक किलो का।
मतलब ये माला अमेरिका में एक लाख पचास हजार रुपए के लिए जाएगा। गलती कर दी। डेढ़ लाख रुपए के लिए ये अमेरिका में बिकता है और यहाँ पर हमारे किसान को 250 रुपए प्रति किलो, 2500 रुपए दस किलो के लिए। मैं आपसे पूछना चाहता हूं, ये पैसा जा कहाँ रहा है, ये जा कहाँ रहा है, किसके हाथ में जा रहा है? ये किसान के हाथ में तो नहीं जा रहा ना। तो ये देखिए, इसको कहते हैं आर्थिक अन्याय और ये हर चीज में हो रहा है। जो मैकेनिक गाड़ी बनाता है, जिसने इस माइक्रो फोन को आज सुबह ठीक किया, मोबाइल फोन को जो ठीक करता है, जूते बनाता है, टी-शर्ट बनाता है, जो भी हाथ से काम करता है, उसके साथ हिंदुस्तान में भयंकर अन्याय हो रहा है। इसके बारे में कोई बोल नहीं रहा।
मैंने आपको बोला कि दस किलो की माला अमेरिका में एक लाख पचास हजार रुपए के लिए बिक रही है, आप हैरान हो गए। एक लाख पचास हजार रुपए ये पड़ा हुआ है हमारे सामने। इसमें से दो-तीन हजार रुपए किसान की जेब में जा रहे हैं। क्या ये अन्याय नहीं है, सबसे बड़ा अन्याय है। तो जब हम आर्थिक न्याय की बात करते हैं, हम चाहते हैं कि अगर ये एक लाख पचास हजार रुपए की माला है, तो कम से कम तीस-चालीस हजार रुपए तो किसान के हाथ में जाए। अगर मैकेनिक काम कर रहा है, मोबाइल फोन को ठीक कर रहा है, खेत में काम कर रहा है, उसको अपनी मेहनत का सही फल तो मिले और जहाँ भी देखो हिंदुस्तान में, मैंने छोटा सा उदाहरण दिया आपको, जहाँ भी देखो, जो गरीब है, कमजोर है, हाथ से काम करता है, उसको अपनी तपस्या का फल नहीं मिलता देश में।
तो ये दो बातें मैं आपसे कहना चाहता था। एक – किसकी कितनी आबादी है, ओबीसी कितने, दलित कितने, आदिवासी कितने और उनमें से कितने गरीब हैं, कितनों के पास सरकारी नौकरी है, कितने कंपनी में काम कर रहे हैं, देश का एक्सरे और दूसरा बहुत महत्वपूर्ण सवाल – डेढ़ लाख रुपए की माला में से हमारे किसान को ढाई हजार, तीन हजार रुपए क्यों मिल रहे हैं, ज्यादा क्यों नहीं मिल रहे हैं? यही दो सवाल हैं हिंदुस्तान के सामने, बाकी सब आपके ध्यान को इधर-उधर करने की बात है। अब आप कहोगे कि इसमें बिहार का क्या रोल है, बिहार को क्या करना है? हजारों साल से ये प्रदेश इस देश को सामाजिक न्याय और आर्थिक न्याय दिखा रहा है। सोशल मूवमेंट होती है, देश जागता है, तो बिहार से जागता है। गांधी जी को आज हम याद कर रहे हैं, उनकी तपस्या चम्पारण में शुरु हुई थी, बिहार में शुरु हुई थी, इसलिए मैं आपको यहाँ कह रहा हूं, बीजेपी के लोग आपके ध्यान को इधर-उधर करना चाहते हैं, क्योंकि वो नहीं चाहते कि आप सबसे जरूरी मुद्दे के बारे में बात करनी शुर कर दें और दो ही मुद्दे हैं- आर्थिक न्याय, जो मैंने आपको यहाँ दिखाया और सामाजिक न्याय जिसको मैं एक्सरे कह रहा हूं और वो भी पहला कदम है।
भाईयो और बहनो, पिछले साल हमने भारत जोड़ो यात्रा की। कन्याकुमारी से हम कश्मीर तक चले। समुद्र के तट से शुरु की, चलते गए, चलते गए, चलते गए, हिमालय तक चले। आप सब हमारे साथ चले थे। बीजेपी देश में नफरत और हिंसा फैला रही है। इनका लक्ष्य यही है कि आप हिंसा में, नफरत में उलझे रहो, एक भाई दूसरे से लड़े और आप आर्थिक और सामाजिक न्याय की बात मत करो और भारत जोड़ो यात्रा ने देश में एक नया रास्ता दिखाया। यात्रा में बिहार के लोग हमारे साथ चले, बंगाल के लोग चले और आपने हमें कहा देखिए, आप कन्याकुमारी से कश्मीर जा रहे हो, बिहार, बंगाल, उत्तर प्रदेश, इसमें से आप यात्रा क्यों नहीं कर रहे हो? बात बिल्कुल सही थी। इसलिए हमने मणिपुर से भारत जोड़ो न्याय यात्रा शुरू की।
मणिपुर से क्यों, क्योंकि बीजेपी और आरएसएस की विचारधारा ने मणिपुर को जला दिया है। सिविल वॉर का माहौल बन गया है, लोग मर रहे हैं, घर जलाए जा रहे हैं और प्रधानमंत्री आज तक वहाँ नहीं गए। मणिपुर में शुरु किया, नागालैंड, अरुणाचल, बंगाल, असम और अब हम बिहार आए हैं। यात्रा में हम लंबे भाषण नहीं करते, 15-20 मिनट बोलते हैं, छह-सात घंटे आपकी बात सुनते हैं। आज सुबह चाय की दुकान में हमने तीन-चार परिवारों के साथ चाय पी, उनकी बात सुनी। बस में लोग आते हैं, हम पैदल चलते हैं, पदयात्रा में चलते हैं, क्यों – आपके दिल में जो है, वो हम समझना चाहते हैं, सुनना चाहते हैं। हम अपने मन की बात नहीं रखना चाहते हैं, हम आपके मन की बात सुनना चाहते हैं, समझना चाहते हैं और यात्रा में, हमने पिछली यात्रा में एक नारा निकाला था – नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान खोलनी है और पिछले दो दिन आपने यात्रा में मोहब्बत की दुकान खोली है, इसके लिए दिल से मैं आपका धन्यवाद करना चाहता हूं।
जहाँ भी हम गए हैं, वहाँ बिहार के युवा, माताएं-बहने, किसान, मजदूर, छोटे दुकानदार, सबने यात्रा को समर्थन दिया, अपनी पूरी की पूरी शक्ति यात्रा को दी और जितनी भी मोहब्बत दे सकते थे, आपने हमें दिया। इसके लिए मैं आपको दिल से धन्यवाद करना चाहता हूं और अंत में आपसे कहना चाहता हूं कि सामाजिक न्याय और आर्थिक न्याय से बड़ी कुछ बात नहीं है। यही है, हिंदुस्तान का भविष्य अगर आप अच्छा चाहते हैं तो आर्थिक न्याय और सामाजिक न्याय हिंदुस्तान की जनता को देना ही पड़ेगा।
उन्होंने आगे कहा,”मुख्यमंत्री पद और मंत्री पद की शपथ ली जाती है। तभी वह सीएम हाउस के लिए निकल जाते हैं। गाड़ी में पता चलता है कि वह अपना शॉल गवर्नर के घर छोड़ आए हैं। इस पर वह ड्राइवर से गवर्नर के घर वापस चलने को कहते हैं। जैसे ही गवर्नर के पास जाते हैं और दरवाजा खुलता है तो गवर्नर कहते हैं, ‘अरे, इतनी जल्दी आ गए?’। ऐसी हालत है बिहार की। थोड़ा सा दवाब पड़ता है और यूटर्न ले लेते हैं।”
बीजेपी नहीं चाहती थी कि बिहार में जातिगत जनगणना हो: राहुल गांधी
राहुल गांधी ने आगे सीएम नीतीश कुमार पर निशाना साधते हुए सवाल पूछा, नीतीश जी कहां फंसे? हमने नीतीश जी से कहा था कि आपको बिहार में जातिगत जनगणना करवानी होगी, हम आपको छूट नहीं दे सकते।
लेकिन BJP नहीं चाहती थी कि बिहार में जातिगत जनगणना हो, क्योंकि वे देश को सच बताने से डरते हैं। BJP नहीं चाहती कि जनता का ध्यान सामाजिक न्याय पर जाए।
इसलिए BJP ने नीतीश जी को बीच से निकलने का रास्ता दे दिया और नीतीश जी उस रास्ते पर निकल गए। नीतीश जी यहां फंस गए।
महागठबंधन को नीतीश कुमार की जरूरत नहीं: राहुल गांधी
कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने आगे कहा कि ‘महागठबंधन’ बिहार में सामाजिक न्याय के लिए लड़ाई जारी रखेगा और गठबंधन को इसके लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जरूरत नहीं है। राहुल गांधी ने आगे कहा कि दलितों और पिछड़े वर्गों को देश के सभी क्षेत्रों में उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिलता है।
राहुल गांधी ने आगे कहा, महागठबंधन बिहार में सामाजिक न्याय के लिए लड़ेगा। हमें उस उद्देश्य के लिए नीतीश कुमार की आवश्यकता नहीं है, हमें उनकी बिल्कुल भी आवश्यकता नहीं है। कांग्रेस ‘महागठबंधन’ का हिस्सा है, जिसमें राजद और वामपंथी दल भी शामिल हैं।
कांग्रेस ने जाति जनगणना का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि हमारे देश को दलितों, ओबीसी और अन्य लोगों की सटीक जनसंख्या निर्धारित करने के लिए जाति-आधारित जनगणना की आवश्यकता है।