जनजीवन ब्यूरो / चंडीगढ़ : हरियाणा की राजनीति लगातार करवट ले रही है। दो दिन में तीन बड़े घटनाक्रम ने पूरे देश का ध्यान खींचा है। पहला, 10 मार्च को हुआ, जब पूर्व केंद्रीय मंत्री चौ. बीरेंद्र सिंह के बेटे और हिसार लोकसभा सीट से भाजपा सांसद ब्रजेंद्र सिंह कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए। दूसरा और तीसरा घटनाक्रम 12 मार्च को हुआ। भाजपा ने सुबह जजपा के साथ गठबंधन तोड़ दिया, तो दोपहर बाद नायब सैनी को मुख्यमंत्री बनाने का एलान कर दिया। नायब सैनी, पिछड़े वर्ग से आते हैं।
पूर्व केंद्रीय मंत्री चौ. बीरेंद्र सिंह कांग्रेस के कद्दावर नेता थे लेकिन पाला बदले और भाजपा पहुंच गए। बीरेंद्र सिंह के बेटे और हिसार लोकसभा सीट से भाजपा सांसद ब्रजेंद्र सिंह ने पार्टी को अलविदा कह कर कांग्रेस का दामन थाम लिया। खास बात है कि चौ. बीरेंद्र सिंह, जिस बात को लेकर भाजपा से नाराज चल रहे थे, उनकी वह इच्छा भी पूरी हो गई। हालांकि यहां पर टाइमिंग का बड़ा खेल रहा है। चौ. बीरेंद्र सिंह, भाजपा और जजपा गठबंधन के खिलाफ थे। उन्होंने अक्तूबर 2023 में कहा था, यदि भाजपा-जजपा गठबंधन जारी रहा, तो वे पार्टी छोड़ देंगे। 2024 में होने वाले विधानसभा चुनाव में जजपा को अपने वोट नहीं मिलने वाले हैं। अगर भाजपा और जजपा का गठबंधन जारी रहा, तो बीरेंद्र सिंह नहीं रहेगा, ये बात साफ है।
अब भाजपा ने मंगलवार को जजपा से गठबंधन तोड़कर, चौ. बीरेंद्र सिंह की वह इच्छा पूरी कर दी, लेकिन टाइमिंग में इस घटनाक्रम को पीछे कर दिया। इससे दो दिन पहले सांसद ब्रजेंद्र सिंह ने भाजपा को अलविदा कह दिया था। इसके 48 घंटे बाद भाजपा और जजपा गठबंधन तोड़ने की बात सामने आ गई। हालांकि दोपहर तक इस बाबत जजपा की तरफ से कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया। दिल्ली में जजपा विधायकों की बैठक चल रही थी। राजनीतिक जानकारों का मानना है, तीसरा घटनाक्रम मुख्यमंत्री खट्टर को बदलना रहा है।
भाजपा ने नायब सैनी को मुख्यमंत्री बनाकर कई निशाने साध दिए हैं। अब मनोहर लाल खट्टर को लोकसभा का चुनाव लड़ाया जा सकता है। हालांकि खट्टर को सीएम बनाकर भाजपा ने गैर जाट वोटों को साधने का प्रयास किया था। इसमें भाजपा को काफी हद तक कामयाबी भी मिली। खट्टर, पंजाबी समुदाय से आते हैं। प्रदेश के शहरी क्षेत्र में पंजाबी समुदाय की अच्छी खासी तादाद है। अब भाजपा ने सैनी को सीएम बनाकर पिछड़े समुदाय को साधने का प्रयास किया है। भले ही हरियाणा में सैनी समुदाय की संख्या ज्यादा नहीं है, लेकिन वे गैर जाट वोटों का हिस्सा हैं। प्रदेश में भाजपा का फोकस, गैर जाट वोटों पर ही रहा है। पार्टी के नेताओं की सोच है कि पंजाबी, दलित, पिछड़े, ब्राह्मण, बनिया व राजपूत समुदाय का सियासी फायदा, भाजपा को मिलेगा।
हरियाणा में लगभग 22 फीसदी आबादी जाटों की है। पहले जाटों का झुकाव चौ. देवीलाल की पार्टी की तरफ रहा था। उसके बाद जाटों की आबादी का एक हिस्सा बंसीलाल के साथ चला गया। इस बीच जाटों ने ओमप्रकाश चौटाला का साथ दिया और वे मुख्यमंत्री बन गए। 2004 के बाद कांग्रेस के भूपेंद्र हुड्डा ने जाट वोट बैंक में बड़ी सेंध लगाई। वे दो बार मुख्यमंत्री बने। मौजूदा समय में भी जाट वोट बैंक पर भी हुड्डा की मजबूत पकड़ है। ऐसे में भाजपा ने अब मुख्यमंत्री बदलकर और जजपा से गठबंधन तोड़कर, गैर जाटों में अपनी पैठ मजबूत करने की कोशिश की है। भाजपा की यह रणनीति है कि कांग्रेस, इनेलो और जजपा अलग-अलग चुनाव लड़ते हैं, तो जाटों के वोट तीन जगहों पर बंट जाएंगे। दूसरी तरफ गैर जाट वोटर, जिन्हें भाजपा अपने पक्ष में मानकर चल रही है, लोकसभा और विधानसभा चुनाव में उसका फायदा लेने का प्रयास करेगी।