अमलेंदु भूषण खां
नई दिल्ली । 18वीं लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद से ही नरेंद्र मोदी सरकार एक से एक मुसीबत का सामना कर रही है। जबकि दो कार्यकाल में मोदी सरकार को किसी भी प्रकार की खास परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ा था। मोदी के सामने जो चुनौती है वह है लोकसभा अध्यक्ष की। लोकसभा स्पीकर को लेकर मोदी सरकार और विपक्ष के बीच टकराव बढ़ गया है। मोदी सरकार ने लोकसभा अध्यक्ष को लेकर अपना पत्ता नहीं खोला था। जैसे ही ओम बिरला का नाम सामने आया वैसे ही विपक्ष सक्रिय हो गया। ओम बिरला को विपक्ष बिल्कुल ही पसंद नहीं करता है। स्पीकर पद के लिए 26 जून को सुबह 11 बजे वोटिंग होगी।
ओम बिरला 130 से अधिक सांसदों को 17वीं लोकसभा में सस्पेंड किया था। जो कि संसद के इतिहास में पहली बार हुआ था। काफी चीज़ों पर चर्चा न होकर सीधा कानून बन गया। इसलिए विपक्ष ओम बिरला के कामकाज पर नकेल डालने के लिए यह कदम उठाया है।
18वीं लोकसभा के स्पीकर के चयन को लेकर सरकार और विपक्ष के बीच आम सहमति नहीं बन पाई। अब स्पीकर का चयन चुनाव के माध्यम से होगा। देश के इतिहास में ऐसा दूसरी बार होने जा रहा है। लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए सरकार और विपक्ष के बीच सहमति नहीं बन पाई है। इसके बाद भाजपा सांसद ओम बिरला सरकार और कांग्रेस सांसद कोडिकुनिल सुरेश विपक्ष के उम्मीदवार होंगे। कांग्रेस के संगठन महासचिव के सी वेणुगोपाल और द्रमुक नेता टीआर बालू लोकसभा अध्यक्ष के पद के लिए राजग उम्मीदवार का समर्थन करने से इनकार करते हुए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के कार्यालय से बाहर आ गए। वेणुगोपाल ने आरोप लगाया कि सरकार ने उपाध्यक्ष पद विपक्ष को देने की प्रतिबद्धता नहीं जताई। बता दें कि पिछली बार ओम बिरला ही लोकसभा के स्पीकर थे, जबकि के. सुरेश आठ बार के सांसद रह चुके हैं। केवल स्पीकर पद को लेकर ही नहीं इससे पहले प्रोटेम स्पीकर के पद को लेकर भी सरकार और विपक्ष के बीच विवाद देखा गया था। जब सरकार ने भर्तृहरि महताब को प्रोटेम स्पीकर बना दिया था। विपक्ष का आरोप था कि सरकार ने के. सुरेश की वरिष्ठता को नजरअंदाज किया है।
इसी के साथ देश में लंबे समय से चली आ रही परंपरा टूट गई। दरअसल, पहले लोकसभा सत्र को छोड़ दें तो अब तक निचले सदन में अध्यक्ष सर्वसम्मति से ही चुना जाता रहा है। पिछली बार भी ऐसा ही हुआ था। हालांकि, इस बार दोनों ओर से उम्मीदवारों के नामांकन के साथ ही सर्वसम्मति से इस पद पर होने वाली निर्वाचन की बीते 16 लोकसभा से जारी परंपरा टूट जाएगी। 15 मई 1952 को पहली लोकसभा के अध्यक्ष का चुनाव हुआ था। इस चुनाव में सत्ता पक्ष के जीवी मावलंकर उमीदवार थे। उनका मुकाबला शंकर शांतराम मोरे से हुआ था। मावलंकर के पक्ष में 394 वोट, जबकि 55 वोट उनके खिलाफ पड़े थे। इस तरह मावलंकर आजादी से पहले देश के पहले लोकसभा स्पीकर बने थे।
संसद भवन में लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए ओम बिरला के पक्ष में एनडीए के नेताओं ने 10 सेट में नामांकन दाखिल किया। इस दौरान भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, गृह मंत्री अमित शाह और एनडीए के अन्य नेता मौजूद थे। वहीं, विपक्षी की ओर से कांग्रेस सांसद के. सुरेश ने लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए बिरला के खिलाफ 3 सेट में नामांकन दाखिल किया।
नामांकन से पहले राहुल गांधी ने कहा- कांग्रेस अध्यक्ष के पास स्पीकर के समर्थन के लिए राजनाथ सिंह का फोन आया था। विपक्ष ने साफ कहा है कि हम स्पीकर को समर्थन देंगे, लेकिन विपक्ष को डिप्टी स्पीकर का पद मिलना चाहिए। राजनाथ सिंह ने दोबारा फोन करने की बात कही थी, हालांकि अब तक कॉल नहीं आया।
राजनाथ सिंह ने संसद के बाहर मीडिया से कहा कि मैंने स्पीकर पद के समर्थन के लिए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से तीन बार फोन पर बातचीत की है। कांग्रेस सांसद केसी वेणुगोपाल और डीएमके के टी आर बालू राजनाथ से मिले, लेकिन डिप्टी स्पीकर पर जवाब नहीं मिलने के बाद उनके ऑफिस से लौट आए।
सिंह के अलावा अमित शाह और जेपी नड्डा ने भी विपक्ष को मनाने की कोशिश की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल और ललन सिंह ने कांग्रेस पर शर्तें रखने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि सरकार डिप्टी स्पीकर के चुनाव के समय विपक्ष की मांग पर चर्चा करने को तैयार है।
अब तक किस किस ने संभाला लोकसभा स्पीकर का पद?
गणेश वासुदेव मावलंकर लोकसभा के पहले अध्यक्ष थे। कांग्रेस के लोकसभा सांसद मावलंकर का कार्यकाल मई 1952 से फरवरी 1956 तक था। एम. अनन्तशयनम अय्यंगार देश के दूसरे लोकसभा अध्यक्ष बने। उन्होंने लोकसभा के प्रथम अध्यक्ष जी.वी. मावलंकर के आकस्मिक निधन के बाद अध्यक्ष पद का दायित्व ग्रहण किया था। कांग्रेस पार्टी के सांसद अय्यंगार के दो कार्यकाल रहे, जिसमें पहला मार्च 1956 से मई 1957 तक और दूसरा मई 1957 से अप्रैल 1962 तक रहा।
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