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राजेश रापरिया
कृषि के बाद देश में सबसे ज्यादा रोजगार सूक्ष्म, लघु और मध्यम इकाइयाँ (एमएसएमई) देती हैं। देश में लगभग 6.34 करोड़ एमएसएमई इकाइयाँ हैं। इनमें तकरीबन 6.30 करोड़ सूक्ष्म उद्योग हैं, 33 लाख लघु और 5,000 मध्यम उद्योग की इकाइयाँ है। अद्यतन जानकारी के अनुसार, 2020-21 में देश के कुल विनिर्माण में इस क्षेत्र की हिस्सेदारी 36% थी। देश के कुल निर्यात में इनका योगदान 2020-21 में 49.4% था, जो 2022-23 में घट कर 43.6% रह गया। सरकारी आँकड़ों के अनुसार संगठित और गैर-कृषि क्षेत्र में मुख्य रूप से छोटी इकाइयों का प्रभुत्व है, जिनमें औसतन 2 लोग काम करते हैं। भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में इनका योगदान 6% से थोड़ा अधिक है, लेकिन देश का 19% कार्यबल इनमें कार्यरत है। एक समाचार के अनुसार, विगत 7 सालों में विनिर्माण क्षेत्र में 18 लाख असंगठित उद्योग बंद हो गये हैं, जिससे 54 लाख लोग अपनी आजीविका से हाथ धो बैठे हैं। ये आँकड़े राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के सर्वेक्षण पर आधारित हैं।
भारत सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में एमएसएमई के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न नीतियों और योजनाओं को लागू किया है, जिनका लक्ष्य जीडीपी में उनके योगदान का 50% तक बढ़ाना है। इस समय इस क्षेत्र के सामने सबसे बड़ी चुनौती सूक्ष्म इकाइयों को लघु और मध्यम इकाइयों में तब्दील करने की है। लेकिन तमाम सरकारी समर्थन, योजनाओं और नीतियों के बावजूद यह क्षेत्र अनेक ऐसे कायदे-कानूनों से जूझ रहा है, जो उनके कामकाज को सुगम करने की मंशा से बनाये गये थे।
पिछले साल केंद्र सरकार ने एक कानून बनाया कि एमएसएमई इकाइयों का भुगतान 45 दिन के भीतर कर दिया जाना चाहिए। यदि भुगतान करने वाला ऐसा नहीं करता है तो उक्त भुगतान उसकी आय में शामिल मान लिया जायेगा। लेकिन इस नियम का अधिकांश कारोबारियों को पता नहीं है। कपड़ा उद्योग इस क्षेत्र का एक बड़ा घटक है। इस उद्योग में 90 दिन के अंदर भुगतान किये जाने की परंपरा बहुत पुरानी है। अनेक रिपोर्टों से पता चलता है कि इससे कारोबार में दिक्कतें आ रही हैं और अविश्वास बढ़ रहा है। एक खबर के अनुसार इस कानून के चलते गुजरात में 40000 इकाइयों ने अपना रजिस्ट्रेशन बतौर एमएसएमई खत्म कर लिया है। कारोबारियों का कहना है कि यह नियम जमीनी हकीकत को ध्यान में रख कर नहीं बनाया गया है। ऐसे व्यापारियों के अंदर एक-दूसरे के प्रति अविश्वास की भावना बन गयी है, जो कारोबार को प्रभावित कर रही है। कारोबारियों ने इस नियम पर सरकार से पुनर्विचार करने का आग्रह किया है।
कारोबारी अगर बैंक का नियत भुगतान या कर्ज 90 दिन के अंदर नहीं कर पाते हैं तो उन्हें एनपीए घोषित कर दिया जाता है। इससे कामकाज में भारी दिक्कत आती है। कारोबारियों ने इस अवधि को 180 दिन करने की माँग की है। इसके अलावा, इस क्षेत्र की इकाइयों को बैंकों से कर्ज मिलने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। दस्तावेजों को पूरा करने और लेखाकार (सीए) फीस आदि की लागत काफी आती है, जिससे बैंक में कर्ज लेना इन छोटी इकाइयों के लिए मुश्किल हो जाता है। यही कारण है कि बैंकों के कुल दिये कर्ज में इनकी हिस्सेदारी बहुत कम 28% है, जिस पर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) भी चिंतित है। ऐसे में इन छोटी इकाइयों को बाजार से अधिक ब्याज पर कर्ज लेना पड़ता है, जिससे लागत बढ़ जाती है और प्रतिस्पर्धा का मुकाबला करने की शक्ति क्षीण हो जाती है। नतीजतन, लगातार इस क्षेत्र में इकाइयाँ बंद होती रहती हैं।
वैश्विक पैमाने पर एमएसएमई क्षेत्र के सकल घरेलू उत्पादन के मामले में हम बहुत पीछे हैं। विश्व स्तर पर सकल घरेलू उत्पाद में इस क्षेत्र का योगदान 50% है, लेकिन देश में यह महज 38% है। यदि भारत सरकार को देश को विकसित राष्ट्र बनाना है, तो उसका रास्ता एमएसएमई क्षेत्र से होकर ही जाता है। ग्रामीण तनाव और बेरोजगारी की समस्या दूर करने का सबसे प्रामाणिक और कारगर उपाय एमएसएमई क्षेत्र का विस्तार ही है। बड़े उद्योग न तो रोजगार दे सकते हैं और न ही आय विषमता को दूर कर सकते हैं। इस क्षेत्र की एक प्रमुख संस्था इंडिया एमएसएमई ने आगामी बजट में इस क्षेत्र के संवर्धन और वैश्विक विपणन के लिए 5,000 करोड़ रुपये के समर्पित कोष की माँग सरकार से की है। इस संस्था का कहना है कि इससे इस क्षेत्र को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनने और तकनीकी उन्नयन में सहायता मिलेगी।
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