पुरस्कृत उपन्यासकार और पूर्व पत्रकार जैघम इमाम अपनी फिल्म ‘दोजख- इन सर्च ऑफ हेवेन’ (Dozakh-in Search of Heaven) के साथ सिनेमा घरों में दस्तक देने को तैयार हैं। यह फिल्म कई फिल्म समारोहों में दिखाई जा चुकी है। इस फिल्म को पूरी दुनिया भर से वाहवाही और प्रशंसा मिली है। काफी संवेदनशील मुद्दों पर आधारित फिल्म ‘दोजख’ सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने वाली है। न्यूजरूमपोस्ट के साथ साक्षात्कार के दौरान जैघम ने इस फिल्म निर्माण के पीछे अपनी सोच और विचारधारा के बारे में बताया। साथ ही उन्होंने अपने गृहनगर बनारस में दोनों धर्मों की एकता के बारे में बताया।
जनजीवन: आप अपनी फिल्म ‘दोजख- इन सर्च ऑफ हेवेन’ के बारे में बताइये
जैघम इमाम : हमारी इस फिल्म की शुरुआत साल 2009 में ही हो गई थी जब मैंने दोजख नाम से ही एक उपन्यास लिखा था। दोजख का मतलब जहन्नुम या नरक होता है। उस दौरान मैं आज तक न्यूज चैनल में काम किया करता था। लेकिन साल 2010 में पत्रकारिता को अलविदा कह कर मैं मुंबई में शिफ्ट हो गया और वहीं दो टीवी सीरियल के लिए काम करना शुरू कर दिया। इसके बाद ही मैंने एक किताब लिखने और फिर उस पर फिल्म बनाने के बारे में सोचा। हमारी इस फिल्म की शूटिंग बनारस में हुई है और यह फिल्म एक मुस्लिम धार्मिक नेता और 12 साल के उनके बेटे जानू पर आधारित है। जानू अपने पड़ोस के एक मंदिर के पुजारी के बेटे का दोस्त है। जबकि धार्मिक नेता इस दोस्ती के खिलाफ है और वह इसके लिए कई बार जानू को सजा भी दे चुका है। वहीं पुजारी और उनका परिवार जानू को पसंद करता है और अपने घर में उसका स्वागत भी करता है। पुजारी जानू को इतना मानते हैं कि हिंदू के धार्मिक नाटक रामलीला में उसे हनुमान को रोल भी दिला देते हैं। लेकिन यह बात मुस्लिम धार्मिक नेता को रास नहीं आती है। बाद में जानू पर परिवार का इतना दबाव पड़ता है कि उससे आजिज आकर वह अपना घर छोड़ देता है। बाद में वह धार्मिक नेता अपने बेटे की खोज में निकलता है और यहीं से फिल्म की कहानी बनती है।
जनजीवनडॉट कॉम : हिंदू-मुस्लिम विरोध जैसे ज्वलंत मुद्दे पर फिल्म बनाने की प्रेरणा आपको कहां से मिली?
जैघम इमाम : मेरा जन्म और लालन पालन बनारस में हुआ है। बनारस में हिंदू-मुस्लिम की मिली जुली संस्कृति है। हमारे शहर में ‘गंगा-जमुनी तहजीब’ काफी लोकप्रिय कहावत है। जिस प्रकार इलाहाबाद में गंगा-जमुना नदी आपस में मिलती है उसी प्रकार हिंदू और मुस्लिम मिलजुल कर एक साथ बनारस में रहते हैं। मेरा जन्म इसी माहौल में हुआ है। इसी माहौल से हमें इस तरह की फिल्म बनाने की प्रेरणा मिली है। बनारस में हिंदू और मुस्लिम शांति के साथ रहते हैं। यह सच्चाई है कि यहां हर साल होने वाली रामलीला में कई मुस्लिम रावण और हनुमान जैसे पात्रों की भूमिका निभाते हैं। इसके अलावा हिंदुओं के अन्य पर्वों के लिए मूर्ति बनाने का काम भी मुस्लिम करते हैं। लेकिन आज-कल लोग अपनी राजनीतिक स्वार्थ और निजी उद्देश्य के लिए इसका उपयोग करते हैं। इसलिए मैंने सोचा कि हमें हिंदू-मुस्लिम सौहार्द के लिए इस प्रकार की फिल्म बनानी चाहिए।
जनजीवन डॉट कॉम : कई फिल्म समारोह में आपकी फिल्म ‘दोजख’ दिखाई गई है, आपको किस प्रकार का रिस्पांस मिला है ?
जैघम इमाम : ईमानदारी से कहें तो यह कोई व्यावसायिक फिल्म नहीं, यह एक कला फिल्म या फिर ऑफ बीट फिल्म है। हमलोगों को भी इस फिल्म को लेकर काफी संशय था कि लोग इसे किस प्रकार लेंगे, लोग इस प्रकार की फिल्म को स्वीकार करेंगे कि नहीं। लेकिन संयोग से हमलोग जहां इस फिल्म को लेकर गए हमलोगों को इसे बार-बार दिखाने के लिए अलग से व्यवस्था करनी पड़ी। मुझे दिल्ली का वाकया याद आता है। हमारी इस फिल्म की स्क्रिनिंग दिल्ली स्थित हैबिटैट सेंटर में होने वाली थी। वहां दर्शकों के बैठने की क्षमता महज 150 सीटों की थी जबकि साढ़े चार सौ से ज्यादा लोग इस फिल्म को देखने पहुंच गए। कई जगहों पर इस प्रकार के शानदार रिस्पांस मिले हैं। सोशल मीडिया पर इस फिल्म को काफी रिस्पांस मिला है। ‘दोजख’ फिल्म पूरी दुनिया में देखी गई है और इसे दुनिया भर का प्यार मिला है। इस फिल्म के कारण हमें दुनिया भर से प्रशंसा मिली है। मुंबई, दिल्ली, कोलकाता, त्रिवेंद्रम, बंगलुरू के अलावा कई अन्य शहरों में यह फिल्म दिखाई जा चुकी है। ऑस्ट्रेलिया में आयोजित फिल्म समारोह में इस फिल्म को स्पेशल ज्यूरी अवार्ड मिल चुका है।